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( ५४ ) [ मीमांसा श्लोक बार्तिक ] मीमांसा दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान महामति कुमारिल भट्ट ने महर्षि जैमिनी प्रणीत मीमांसा दर्शन पर तंत्र वार्तिक और श्लोक बार्तिक नाम के दो बड़े ही उच्च कोटि के ग्रन्थ लिखे हैं उनमें से श्लोक वार्तिक में ही दार्शनिक विषयों की अधिक चर्चा की है। उक्त ग्रन्थ में ऐसे कितने ही स्थल हैं जिन में कि अनेकान्तवाद की चर्चा स्पष्ट देखने में आती है, हमारे ख्याल में तो अन्य दार्शनिक विद्वानों की अपेक्षा कुमारिल भट्ट ने कुछ अधिक और स्पष्ट शब्दों में अनेकान्तवाद का समर्थन किया है । पाठक उनके लेखों को देखें वे कितने सरल और स्पष्ट हैं। अवयवों से अवयवी के भेदाभेद का विचार करते हुए महामति कुमारिल लिखते हैंक-पूर्वोक्तादेव तुन्यायासिद्धेदत्रावयव्यपि ।
तस्याप्यन्त भिन्नत्वं नस्यादवयवैः सह ॥७॥ व्यक्तिभ्यो जातिवच्चैष न निष्कृष्टः प्रतीयते । कैश्चदव्यतिरिक्तत्वं कैश्चिच्च व्यतिरिक्तता॥७६।। दूषिता साधिताऽत्रापि नच तत्र बलाबलम् । कदापि निश्चितं कैश्चित्तस्मान्मध्यस्थतावरम् ॥७७॥
(१) किमत्यन्तभिन्नोऽवयवी-तस्यापीति, कस्मादित्याह व्यक्तिभ्यइति तन्तवएव हि संयोग विशेष वशेन एक दव्यत्वमापन्नाः पटोय मित्येकाकारतया बुद्धद्यागृयन्ते, अतोऽवस्थामात्रादेवावयवेभ्योऽवयविनो भेदो नवत्यन्त भेद इति ।
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