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( ५३ ) "यथाधूमात् वन्हित्व सामान्यविशेष:पर्वतेऽनुमीयते"
अर्थात् पूर्ववत्-अनुमान के उदाहरण में वाचस्पति मिश्र कहते हैं कि “जैसे धूम के ज्ञान से वन्हित्व रूप सामान्यविशेष का पर्वत में अनुमान होता है। यहाँ पर वन्हित्व को सामान्य अथच विशेष उभयरूप से स्वीकार करना ही अनेकान्तवाद का अनुसरण है।
(१) इस पर व्याख्या करते हुए प्रशस्तपाद भाष्य की सम्मति द्वारा साधुपवर बालराम जी ने जो प्रकाश डाला है, विद्वन्मंडली के अवलोकनार्थ उसको भी हम अविकल रूप से यहां पर उद्धृत करे देते हैं ।
"नात्रवन्हित्व सामान्यस्य विशेषोऽनुमेय इति विवक्षित किन्तहीं बन्हित्वरूपः सामान्य विशेषोऽनुमीयते, इत्यभिप्रेतमितिगृहाण कथ वन्हित्वस्य सामान्य विशेषोभयात्मकत्वमितिचेत् अत्राहुः पदार्थधर्म संपहकाराः (सामान्य द्विविधं परमपरं चानुवृत्ति प्रत्यय कारण तत्र परं सत्ता महाविषयत्वात् । साचानुवृत्तेरेवहेतुत्वात्सामान्यमेव द्रव्यत्वाद्यपरमल्प विषयत्वात् तच्चव्यावृत्ते रपिहेतुत्वात्सामान्यं सद् विशेषाख्यामपिलभते) इति ।
अयमर्थः-अत्यन्त व्यावृत्तानां तत्वानां यतः कारणादन्योन्य स्वरूपानुगमः प्रतीयते तत्सामान्यमित्यभिधीयते तच्च द्विविधम् एक द्रव्यादित्रिकवृत्ति सत्ताख्यपरम, एतच स्वाश्रयस्यानुवृत्तेरेवहेतुत्वात्सामान्यमित्येव कीर्त्यते । अपरंच द्रव्यत्व पृथितीत्व गोत्वादि रूपमपरं सामान्यम् एतच्चस्वा श्रयस्य विजातीयेभ्योपि व्यावृत्तरपिहेतुत्वात विशेषइत्यपि व्यवतियते, तथा च सिंद्धवन्हित्वादेः सामान्य विशेष रूपत्वमिति ।
(पृ० १०२ । का०५)
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