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[ सांख्य तत्व कौमुदी ]
निरीश्वरवादी सांख्य दर्शन के सुप्रसिद्ध आचार्य ईश्वरकृष्ण रचित सांख्य कारिकाओं पर "सांख्य तत्व कौमुदी" नाम की व्याख्यारूप एक सुप्रसिद्ध पुस्तक है उसके रचयिता श्री निखिल तंत्र स्वतंत्र आचार्य वाचस्पति मिश्र हैं । इस पुस्तक में
भी अनुमान के उदाहरण में " वन्हित्व" को सामान्य विशेष | उभय मानते हुए अनेकान्त वाद का किसी एक रूप में समर्थन किया हुआ देखा जाता है। वह पाठ इस प्रकार है
(थ) उच्यते द्विरूपं हि ब्रह्मावगम्यते, नाम रूप विकार भेदोपाधिविशिष्टं, तद्विपरीतं च सर्वोपाधि विवर्जितम् ।..... एवमेकमपिब्रह्मापेक्षितोपाधि (सम्बन्धं निरस्तोपाधि संबन्धं चोपास्यत्वेन ज्ञेयत्वेनच वेदान्तेषूपदिश्यते ।
(ब्र० सू० शां० ० १ पा० १ सू० ११)
(च) इह पुनव्र्व्यवहारविषयिकं सत्यं मृगवृष्णिकाद्यनृतापेक्षया उदकादि सत्यमुच्यते । ( तै० उ० शां० भा० २ । ६ । ३) (a) उपाधिवशात्संसारित्वं न परमार्थतः स्वतोऽसंसार्येव । एवमेकत्वं नानात्वं च हिरण्यगर्भस्य तथा सर्वजीवानाम् ।
( वृ० उ० शां० भा० १ । ४ । ६)
इन वाक्यों में अपेक्षावाद की पूरी पूरी झलक दिखाई दे रही है ! इन पर अधिक विचार करना अनावश्यक है । अनिर्वचनीय शब्द प आग विचार होगा ।
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