________________
भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : ६७
जीव (आत्मा) का अस्तित्व सिद्ध होता है । यदि आत्मा का अस्तित्व न होता तो उसका छठे भूत की तरह निषेध भी सम्भव नहीं होता । आत्मा निषेध होता है, अतः सिद्ध है कि आत्मा की सत्ता ।
इस प्रकार समस्त आत्मवादी भारतीय दार्शनिकों ने बहुमुखी सबल, अबाध्य एवं निर्दोष युक्तियों द्वारा अनात्मवादियों के तर्कों का निराकरण करके सिद्ध कर दिया कि शरीरादि से भिन्न आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता वास्तविक है, काल्पनिक नहीं । वैदिक और जैन दार्शनिकों ने आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए जो तर्क दिये हैं उनमें केवल शाब्दिक भेद हैं, वास्तविक नहीं । पारoffen या अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष अर्थात् केवलज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और अवधिज्ञान द्वारा आत्मा का प्रत्यक्ष सिद्ध करना जैन दार्शनिकों की अपनी मौलिक विशेषता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org