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भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : ६३
लोकरूढ़ि अर्थ द्वारा आत्मास्तित्व-सिद्धि : विद्यानन्द आचार्य ने अष्टसहस्री में कहा है कि लोक व्यवहार में कहा जाता है कि 'जीव चला गया या जीव है' । लोक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले वाक्यों में जीव पद के द्वारा आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है, क्योंकि लोक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले शब्द सत्तावान् पदार्थों को सूचित करते हैं। यहां पर यह कहना ठीक नहीं है कि 'जोव' शब्द इन्द्रियादि का सूचक है क्योंकि यह पहले लिखा जा चुका है कि इन्द्रियादि भोग के साधन हैं, जब कि आत्मा भोक्ता है । अतः सिद्ध है कि भोक्ता आत्मा
के लिए जीव शब्द रूढि अर्थ में प्रसिद्ध है ।
(ग) परलोकी के रूप में : परलोक गमन कर्ता के रूप में आत्मा की सत्ता सिद्ध करते हुए आचार्य विद्यानन्द ने कहा है कि मृत्यु के बाद शरीर यहीं जला दिया जाता है । पुण्य पाप के प्रभाव से परलोक जाने वाला ऐसा तत्त्व अवश्य है जा परलोक जाता है । अन्यथा संसार और मोक्ष की जाएगी । अतः जो तत्त्व परलोक जाता है, वही आत्मा है ।
व्यवस्था नष्ट हो
(घ) मागम प्रमाण से आत्मास्तित्व-सिद्धि : विद्यानन्द ने उपर्युक्त प्रमाणों के अतिरिक्त आगम से आत्मा की सत्ता सिद्ध करते हुए कहा है कि आप्त प्रणीत आगम से भी जीव है यह भलीभांति सिद्ध हो जाता है ।
६. वादीभसिंह :
आचार्य वादीभसिंह ने स्याद्वादसिद्धि में अर्थापत्ति प्रमाण द्वारा आत्मा की सत्ता सिद्ध करते हुए करते हुए कहा है कि धर्मादि का कर्ता आत्मा है, अन्यथा सुख-दुःख नहीं होते । सुख-दुःख का अनुभव होता है, इसलिए धर्मादि का कर्ता आत्मा है । इस प्रकार अर्थापत्ति प्रमाण से आत्मा की सत्ता सिद्ध होती है५ । ७. आचार्य प्रभाचन्द्र :
आचार्य प्रभाचन्द्र ने पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा आत्मा के अस्तित्व के लिए प्रतिपादित तर्कों के अलावा निम्नांकित तर्क भी दिये हैं-
१. अष्टसहस्त्री, पृ० २४८
२. कि तहि भोक्तयेर्वात्मनि जीव इति रूढिः । - वही, २४८-४९
३. सत्यशासन परीक्षा, पृ० १८
४. वही, पृ० १६
५.
धर्मादिकार्यसिद्ध श्य तत्कर्ता चापि सिद्धयति ।
कार्यं ही कर्तृसापेक्षं तद्धर्मादि सुखावहम् ॥
इत्यर्थापत्तितः सिद्धस्स आत्मा परलोकमाक् ॥ -- स्याद्वादसिद्धि कारिका
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