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भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : ५३
२. त्रिगुणादि विपर्ययाद्-अर्थात् तीनों गुणों से भिन्न होने से पुरुष की सत्ता का अनुमान होता है । संसार के सभी पदार्थ सत्, रज और तम रूप हैं । अतः इन गुणों से भिन्न जिसकी सत्ता है, वही पुरुष है ।
३. अधिष्ठानात् : संसार के समस्त पदार्थों का कोई न कोई अधिष्ठाता होता है | अतः बुद्धि, अहंकारादि का जो अधिष्ठाता है, वही पुरुष है ।
४. भोक्तृभावात् - सुख-दुःख आदि का जो भोक्ता है वही पुरुष है । डा० देवराज ने भोक्ता का अर्थ द्रष्टा किया है । इस विषय में उन्होंने लिखा है कि बुद्ध आदि पदार्थ दृश्य हैं, अतः इनका द्रष्टा होना अनिवार्य है । इस अनुमान से सिद्ध है कि दृश्य पदार्थों का जो द्रष्टा है, वही पुरुष है ।
५. कैवल्यार्थम् प्रवृते – पुरुष का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए अन्तिम और पांचवीं युक्ति है कि कैवल्य अर्थात् मोक्ष के लिए प्रवृत्ति समस्त मनुष्यों में होती है । इस प्रकार की प्रवृत्ति से सिद्ध है कि प्रकृति आदि से भिन्न पुरुष का अस्तित्व है ।
(ङ) मोमांसा दर्शन में आत्मास्तित्व- सिद्धि :
जैमिनी ने आत्मास्तित्व सिद्ध करने के लिए मीमांसा सूत्र में कोई प्रमाण नहीं दिये हैं । इसका कारण यह है कि कर्म मीमांसा विवेचित करना ही उनका लक्ष्य था । शाबरभाष्य में स्वामी शबर ने इसकी सत्ता के लिए तर्क दिये हैं । बाद के दार्शनिक प्रभाकर और कुमारिल भट्ट ने न्याय-वैशेषिक और सांख्यों की तरह ही युक्तियाँ दी हैं । शबर स्वामी ने मानस प्रत्यक्ष के द्वारा आत्मा की सत्ता सिद्ध की है । यज्ञ विहित फल के भोक्ता रूप में भी आत्मास्तित्व सिद्ध किया है । क्योंकि कर्मों का फल अवश्य मिलता है । अतः कर्म करने वाला और भोगने वाला शरीरादि से भिन्न आत्मा नामक तत्त्व अवश्य है । *
(च) अद्वैत वेदान्त दर्शन में आत्मसिद्धि :
आत्मा की सत्ता वेदान्त दर्शन में स्वतः सिद्ध मानी गयी है । अनुभव करने वाले के रूप में आत्मा की सत्ता स्वयंसिद्ध है । यदि ज्ञाता के रूप में आत्मा
राधाकृष्णन्, भाग २, पृ० ४०२ की पाद
१. भारतीय दर्शन : डा० टिप्पणी ।
२. श्लोक वार्तिक, आत्मवाद । (ख) शास्त्र दीपिका, पृ० (ग) तंत्रवार्तिक : प्रभाकर, पृ० ५१६ । प्रकरणपंजिका, बृहती, पृ० १४९ ।
३. ब्रह्मसूत्र, शांकरभाष्य १।१।५, पृ० १४
४. वही
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११९-१२२ । पृ० १४७ ।
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