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भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : ४७ ३. त्रैकालिक धर्मवाद और वर्तमान धर्मवाद । ४. धर्म-नैरात्म्य-निःस्वभाव या शून्यवाद । ५. विज्ञप्तिमात्रवाद यहाँ इन सबको हम संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं :
पुद्गल नैरात्म्यवादः इस प्रसंग में हम नागसेन द्वारा 'मिलिन्दपञ्हो' में की गयी अनात्मवाद की व्याख्या की चर्चा करेंगे। भगवान् बुद्ध ने अनात्म के उपदेश में एक प्रकार से संघातवाद का उपदेश दिया । मिलिन्दपञ्हो में आत्मा के लिए 'पुग्गल' शब्द का प्रयोग उपलब्ध होता है । नागसेन ने राजा मिलिन्द को लम्बे संवाद में बताया कि पुग्गल अर्थात् आत्मा की वास्तविक सत्ता नहीं है। बुद्ध के बाद नागसेन ने पहली बार आत्मा के अभाव के रूप में अनात्मवाद की व्याख्या की । डा० राधाकृष्णन् ने भी कहा है, आत्मा के प्रश्न पर बुद्ध के मोन साव जाने के कारण नागसेन ने निषेधात्मक अरमान का परिणाम निकाला कि आत्मा नहीं है । एम० हिरियन्ना ने भी लिखा है कि नागसेन ने अपनी अनात्मवाद की व्याख्या में आत्मा के अभाव के साथ ही साथ समस्त पदार्थों का अभाव सिद्ध किया।
पुद्गलास्तिवाद : पुद्गलास्तिवाद वात्सीय पुत्रीय अनात्मवाद के नाम से विश्रुत है। वात्सीयपुत्रीय सम्प्रदाय स्थविरवादी बौद्धों की एक शाखा है। पुद्गलास्तिवादियों के सिद्धान्त-प्रतिपादक कोई ग्रन्थ नहीं है । तत्त्वसंग्रह, कथावस्तु एवं अभिधर्म कोश प्रभृति में पूर्वपक्ष के रूप में इनके सिद्धान्तों का उल्लेख
१. मिलिन्दपञ्हो , २।१११, पृ० २७-३० २. (क) अवि च खो महाराय संखा समजा पज्जति वोहारो नाम मत्तं यदिदं
नागसेनोति न हेत्थ पुग्गलो उपलब्भतीति ।-वही, २०१११, पृ० २७ (ख) परमत्थतो पनेत्थ पुग्गलो यूँ पलभति ।-वही, पृ० ३० । पुग्गल
शब्द यहाँ आत्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है । (ग) यथा हि अंगसम्भारा होति सद्दो रथोति । ___ एवं खन्धेसु सन्तेसु होति सत्तो ति सम्प्रति ॥-वही, पृ० ३० एवं
संयुक्त निकाय, ५।१०।६ (घ) मिलिन्दपञ्हो ( लक्खण पञ्हो), पृ० ५७ एवं उससे आगे
के प्रसंग। ३. भारतीय दर्शन, भाग १ : डा० राधाकृष्णन्, पृ० ३६१ ४. भारतीय दर्शन को रूपरेखा :एम.हिरियन्ना; १० १४२
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