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________________ भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : ३७ १. आत्मा का अस्तित्व : चार्वाक दर्शन आत्म-तत्त्व, पुनर्जन्म और मोक्ष को नहीं मानता | बौद्ध दर्शन पुनर्जन्म तथा मोक्ष या निर्वाण तो स्वीकार करता है लेकिन नित्य आत्म-तत्त्व को नहीं मानता। इनके विरुद्ध सभी दार्शनिक निकाय आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने का गम्भीर प्रयत्न करते हैं । इन प्रश्नों से सम्बन्धित चिन्तन का विवरण हमने अगले अध्याय में दिया है । २. आत्मा का स्वरूप : दूसरी महत्त्वपूर्ण बात आत्मा के स्वरूप को निर्धारित करने की है । इस विषय पर विभिन्न दर्शनों में पर्याप्त मतभेद है । चूँकि हमारे शोध-प्रबन्ध का मुख्य विषय जैन दर्शन है, इसलिए हमने उसे केन्द्र में रखते हुए आत्मा के स्वरूप के विवेचन का विवरण दिया है। जैनेतर दर्शनों के मन्तव्यों को मुख्यतः तुलना के लिए प्रदर्शित किया है । ३. कर्मविपाक एवं पुनर्जन्म : तीसरी महत्वपूर्ण समस्या कर्मविपाक एवं पुनर्जन्म की है । यद्यपि भारत के अधिकांश दर्शन कर्मसिद्धान्त और पुनर्जन्म को मानते हैं । किन्तु कर्मविपाक और पुनर्जन्म की प्रक्रियाओं में गम्भीर मतभेद है । ये मतभेद विभिन्न हिन्दू वैदिक तथा अवैदिक दर्शनों के बीच भी हैं । ४. बन्धन और मोक्ष : चौथी मुख्य समस्या आत्मा के बन्धन और मोक्ष की है । यहाँ भी विभिन्न दर्शनों में गम्भीर मतभेद पाये जाते हैं । वैदिक दर्शनों में अज्ञान से बन्ध और ज्ञान से मोक्ष बताया गया है । बौद्ध दर्शन की मान्यता है कि अविद्या-बंध का कारण और शील, समाधि एवं प्रज्ञा- मोक्ष का साधन है । जैन दार्शनिक सम्यक् - दर्शन, सम्यक् - ज्ञान और सम्यक् चारित्र्य की समष्टि को मोक्ष प्राप्त करने का साधन बतलाते हैं । विशिष्टाद्वैत आदि वैष्णव दर्शनों के अलावा सभी वैदिक, जैन और बौद्ध दर्शनों की मान्यता है कि जीवन्मुक्ति ही जीवन का लक्ष्य है । न्याय-वैशेषिक तथा मीमांसा दर्शन का अभिमत है कि मोक्ष दुःख के अभाव की व्यवस्था है, आनन्द की अवस्था ही नहीं बल्कि सुख या आनन्द की अवस्था रूप है । इस प्रकार स्पष्ट परिलक्षित होता है कि बन्धन और मोक्ष के विषय में भी पर्याप्त मत वैषम्य है । हमारा अन्तिम अध्याय उपसंहार है, जिसमें हमने आत्मा-सम्बन्धी विभिन्न समाधानों का अलग-अलग एवं तुलनामूलक मूल्यांकन किया है । प्रत्येक दर्शन के मन्तव्यों में कुछ बातें ऐसी हैं जो उसे तर्कसंगत और ग्राह्म बनाती हैं, साथ ही प्रत्येक समाधान की अपनी कमियाँ और सीमाएँ हैं । जैन दर्शन का सहानुभूतिपूर्ण विवरण देते हुए मैंने उसकी कमियों पर भी नजर डालने की कोशिश की है । यही प्रक्रिया अन्य दर्शनों के समाधानों में की गयी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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