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________________ २८ : जैनदर्शन में आत्म- विचार १३. जैन दर्शन में आत्मा को निश्चय नय की अपेक्षा सांख्यीय पुरुष की तरह पाप-पुण्य से रहित माना गया है । १४. सांख्य ज्ञान, धर्म, वैराग्य और ऐश्वर्य जैसे गुण पुरुष के न मानकर प्रकृति के मानता है लेकिन जैन दार्शनिक आत्मा को ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य - स्वरूप मानता है । १५. सांख्य पुरुष को न्याय-वैशेषिकों की तरह व्यापक मानता है लेकिन जैन देह परिमाण मानते हैं । १६. सांख्य दर्शन में पुरुष को प्रकृति ही बन्धन में पड़ती है और में आत्मा को ही बंध, मोक्ष होने का उल्लेख किया गया है । निर्लिप्त कह कर उल्लेख उसी को मोक्ष होता है । १७. सांख्य आत्मा निर्गुणी मानता है, लेकिन जैन आत्मा को सगुणी मानता है । १८. जैन दर्शन में आत्मा में परमात्मा होने की शक्ति निहित होने का कथन किया गया, लेकिन सांख्य पुरुष में इस प्रकार की शक्ति का उल्लेख नहीं है । किया गया है कि लेकिन जैन दर्शन मानता है लेकिन जैन दर्शन १९. जैन दर्शन की तरह सांख्य भी पुनर्जन्म की तरह सांख्य यह नहीं मानता है कि पुरुष का पुनर्जन्म होता है', क्योंकि व्यापक होने के कारण उसका स्थान परिवर्तन होना असम्भव है । अतः लिंग शरीर या सूक्ष्म शरीर का ही पुनर्जन्म होना सांख्य मानते हैं, लेकिन जैन दार्शनिक आत्मा का ही पुनर्जन्म मानते हैं । ર २०. जैन दर्शन की तरह सांख्य दार्शनिक भी मानता है कि भेद विज्ञान से कैवल्य की प्राप्ति हो सकती है । २१. सांख्य दर्शन में बतलाया गया है कि मुक्तावस्था में आत्मा शुद्ध चैतन्य रूप और समस्त दुःखों से रहित हो जाती है, लेकिन जैन दर्शन में मुक्तावस्था में आत्मा केवल दुःखों से रहित नहीं होती बल्कि आनन्दादि से युक्त भी होती है । सांख्य दार्शनिक आत्मा को अकर्ता मानते हैं लेकिन जैन दार्शनिक १. सांख्यकारिका, श्लोक ६२ २. प्रवचनसार, ज्ञानतत्त्व अधिकार, गा० ८९-९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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