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________________ भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : २७ ३. जैन एवं सांख्य योग दार्शनिकों ने आत्मा को चैतन्यस्वरूप माना है । दोनों दार्शनिक परम्पराएँ इस बात से सहमत हैं कि चैतन्य आत्मा का आगन्तुक गुण नहीं है जैसा कि न्याय वैशेषिक मानते हैं । चैतन्य आत्मा का वास्तविक गुण है और यह आत्मा की समस्त अवस्थाओं में मौजूद रहता है । ४. सांख्यीय आत्मा जैन दर्शन की आत्मा के साथ इस बात में भी समानता रखती है कि यह अनादि है । ५. दोनों दर्शन में न्याय-वैशेषिक की तरह अनन्त आत्माएँ मानी गयी हैं । अतः दोनों दर्शन बहुजीववादी हैं । ६. सांख्य दर्शन का पुरुष अपरिणामी तथा अपरिवर्तनशील है, लेकिन जैन दर्शन आत्मा द्रव्य दृष्टि से अपरिणामी और पर्याय दृष्टि से परिणामी है । ७. सांख्यों का पुरुष नित्य कूटस्थ है, लेकिन जैनों की आत्मा द्रव्य दृष्टि से नित्य और पर्याय की दृष्टि से अनित्य है । ८. सांख्य दार्शनिकों की तरह जैन दार्शनिक भी मानते हैं कि आत्मा कार्य-कारण की श्रृंखला से परे है । आत्मा न किसी का कार्य है और न किसी का कारण है । ९. सांख्य और जैन दर्शन में महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि सांख्य मत में ज्ञान पुरुष का गुण या स्वभाव नहीं माना गया है । ईश्वरकृष्ण ने ज्ञान को बुद्धि का, जो प्रकृति का परिणाम है, गुण कहा है। इसके विपरीत जैन दार्शनिक आत्मा को ज्ञानस्वरूप मानते हैं । १०. सांख्य पुरुष को निस्त्रैगुण्य तथा असंग मानते हैं, लेकिन जैन दर्शन में संसारी आत्मा को कर्म सहित और मोक्ष में सांख्य की तरह सत्व, रजस् और तमस् गुण रूप समस्त कर्मों से रहित बतलाई गयी है । ११. सांख्य पुरुष को अपरिणामी और निष्क्रिय मानता है, लेकिन जैन आत्मा को परिणामी और सक्रिय मानते हैं । १२. सांख्य-दर्शन में आत्मा राग-द्वेष और सुख-दुःख से रहित माना गया है, लेकिन जैन दर्शन में संसारी आत्मा का रागी-द्व ेषी और सुखी दुःखी होने की परिकल्पना की गयी है और निश्चयनय की अपेक्षा सांख्य दर्शन की तरह रागद्वेषादि से रहित माना गया है । १. समयसार, गा० ३१० २. दुक्खु वि सुक्खु वि बहु-विहउ जीवहं कम्मु जणेइ । — परमात्मप्रकाश, ३. समयसार, गाथा ५१; मोक्षपाहुड़, गा० ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only १।६४ www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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