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________________ भूमिका : भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व : २५ जैन दर्शन में रूपादि को पुद्गल कह कर इनसे भिन्न चैतन्यस्वरूप त्रिकालवर्ती आत्मा की कल्पना की गयी है। (५) संक्षेप में बौद्ध दर्शन में आत्मा क्षणिक और रूपादि पंचस्कन्धरूप या चेतना का प्रवाहमात्र है । जैन दर्शन में आत्मा को द्रव्य को अपेक्षा अपरिवर्तनशील और पर्याय की अपेक्षा परिवर्तनशील है । ___ (६) क्षणिक आत्मा का प्रतिपादन करके भी बौद्धदर्शन में जैन दर्शन की भांति कर्मवाद, पुनर्जन्मवाद ओर निर्वाण का विवेचन किया गया है। __ जैन और वैदिक दर्शन में आत्म-विषयक भेद : वैदिक दर्शनों में अलगअलग दर्शन-परम्परा में आत्मा की अवधारणा अलग-अलग है। अतः जैन दर्शन सम्मत आत्मा के साथ अलग-अलग तुलना करना अनिवार्य है। जैन सम्मत आत्मा की न्याय-वैशेषिक आत्मा के साथ तुलना : जैन दर्शन और न्याय-वैशेषिक दर्शन दोनों आध्यात्मिक दर्शन हैं। दोनों मत के दार्शनिक आत्मा को शरीर, इन्द्रिय, मन आदि भौतिक द्रव्यों से भिन्न एक अभौतिक द्रव्य मानते हैं। दोनों परम्पराओं के चिन्तकों ने चार्वाक और बौद्ध अनात्मवाद की समीक्षा करके आत्मवाद को प्रतिष्ठा की है। उपर्युक्त दोनों परम्पराओं में मौलिक अन्तर निम्नांकित है : १. न्याय-वैशेषिक दर्शन में आत्मा चैतन्यवान् माना गया है, किन्तु जैन दर्शन में वह चैतन्यस्वरूप माना गया है। न्याय-वैशेषिक दार्शनिक चैतन्य को आत्मा का आगन्तुक गुण मानते हैं, और जैन दार्शनिक चैतन्य को आत्मा का यथार्थ गुण स्वभाव मानते हैं । २. सुषुप्ति और मोक्ष अवस्था में न्याय-वैशेषिक आत्मा को जड़ रूप मानते है, किंतु जैन दार्शनिक अजड़रूप मानते हैं। ३. न्याय-वैशेषिकचिंतक आत्मा को अपरिणामी मानते हैं किंतु जैन दार्शनिक आत्मा को कथंचित् परिणामी मानते हैं । ४. न्याय-वैशेषिक और जैन दार्शनिक इस बात में सहमत हैं कि आत्मा नित्य है, किन्तु न्याय-वैशेषिक इसे कूटस्थ नित्य मानते हैं और जैन द्रव्य की दृष्टि से नित्य एवं पर्याय की अपेक्षा अनित्य मानते हैं । १. अप्रच्युतानुत्पन्नस्थिरैक रूपं नित्यम् । --स्याद्वाद् मंजरी, का० ५, पृ० १९ २. तद्भावाव्ययं नित्यम् । तत्त्वार्थ, ५।३० ३. बुद्धयादयोऽष्टावात्म मात्र""नित्या अनित्याश्च । नित्या ईश्वरस्य" । -तर्कसंग्रह : अन्नमभट्ट, अवशिष्ट गुण निरूपण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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