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बन्ध और मोक्ष : २८३ ज्ञान ज्ञेय के बराबर है और ज्ञेय लोक और अलोक है। अतः अनन्तज्ञान सर्वगत है।' दूसरी बात यह है कि सर्वज्ञ का अनन्त ज्ञान युगपत्-~-एक साथ समस्त त्रिकालवर्ती पदार्थों को सूर्य की तरह प्रकाशित करता है ।२।
इसके अतिरिक्त अनन्तज्ञान के विषय में ये प्रश्न भी उठते हैं कि अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान कैसे होता है ? क्या अनुत्पन्न पदार्थ पहले से नियत हैं या नहीं ? यदि नियत हैं तो जैन-दर्शन को नियतिवाद का सिद्धान्त मानना चाहिए,
और यदि नियत नहीं हैं तो अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान होता है, यह कथन सिद्ध नहीं होता है। इसके अतिरिक्त यह भी प्रश्न होता है कि अनन्त को अनन्तज्ञान के द्वारा जाना जा सकता है या नहीं ? तीसरी दार्शनिक समस्या यह है कि अनन्तज्ञान अमूर्त है, उसमें मर्त पदार्थ कैसे प्रतिबिम्बित होते हैं ? चौथा प्रश्न यह है कि क्या अनन्तज्ञान अपरिणामी है या परिणामो ? यदि अपरिणामी है तो वह परिणामी पदार्थों को कैसे जानता है ? यदि वह परिणामी है तो उसे उत्पत्ति विनाश स्वभाव वाला मानना पड़ेगा। पांचवां प्रश्न यह है कि केवली आत्मा के एक देश से समस्त पदार्थों को एक साथ जानता है अथवा समस्त प्रदेशों से ? जैनागमों में इन प्रश्नों का सूक्ष्म दृष्टि से समाधान किया गया है। (ग) मोक्ष के हेतु :
भारतीय दर्शन में मोक्ष के स्वरूप की तरह मोक्ष के उपाय के विषय में भी विभिन्न मत हैं। वैशेषिक, नैयायिक, सांख्य, वेदान्त, बौद्ध आदि दार्शनिक ज्ञानमात्र को मोक्ष का कारण मानते हैं। पाशुपत आदि कुछ दार्शनिक मात्र आचरण को मोक्ष-प्राप्ति का कारण मानते हैं । कुमारिल भट्ट एवं प्रभाकर कर्म (आचरण) और ज्ञान को मोक्ष-प्राप्ति का साधन मानते हैं, जबकि रामानुज भक्ति को। जैन दार्शनिक श्रद्धा, ज्ञान और आचरण के समष्टि रूप को मोक्ष का साधन मानते हैं। सामान्यज्ञान, सामान्यदर्शन और सामान्यचारित्र मोक्ष-प्राप्ति के उपाय नहीं हैं। इसलिए उमास्वामी आदि जैन दार्शनिकों ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की समष्टि को मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बतलाया है। इनमें से किसी एक के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो
१. प्रवचनसार, गाथा २३ । २. भगवतीआराधना, गा० २१४२ । ३. (क) कषायपाहुड़, पुस्तक १ । (ख) धवला, पु० १, सूत्र २२, पुस्तक ६,
सूत्र १४ । (ग) तत्त्वार्थवार्तिक, ५।९। ४. तत्त्वार्थाधिगमभाष्य, ११ ।
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