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२८२ : जैनदर्शन में आत्म-विचार
यदि यह माना जाए कि इन्द्रियों का अभाव होता है, इसलिए बाह्य पदार्थों का ज्ञान मुक्तात्मा को नहीं होता, तो यह कथन भी ठीक नहीं है । यदि ऐसा मान लें तो इन्द्रियों का अपाय (विनाश) मानने से अनन्त सुख का संबेदन नहीं हो सकेगा। इसका परिणाम यह होगा कि मुक्तात्मा अनन्त सुख-स्वरूप है, यह कथन निरर्थक हो जाएगा। अतः, मानना चाहिए कि अनन्त सुख की अभिव्यक्ति की तरह ज्ञानादि की अभिव्यक्ति भी होती है और इसी का नाम मोक्ष है।
सुख-संवेदन की तरह बाह्य पदार्थ का ज्ञान भी अतीन्द्रिय ज्ञान से : मुक्तात्मा के अन्तःकरण का अभाव होने पर अतीन्द्रिय संवेदन के द्वारा सुख का अनुभव होता है, किन्तु बाह्य पदार्थ का ज्ञान मुक्त-जीव को नहीं होता है । इसके प्रत्युत्तर में विद्यानन्दी का कथन है कि सुख-संवेदन की तरह बाह्य पदार्थ का संवेदन भी जीव को अतीन्द्रियज्ञान से होता है ।२ अतः, अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तवीर्य और अनन्तसुख की अभिव्यक्ति का नाम ही मोक्ष है। 8
अनन्तज्ञान और कुछ दार्शनिक समस्याएँ : सिद्ध (मुक्तात्मा) को अनन्तज्ञान स्वरूप मानने पर कुछ दार्शनिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यहाँ वे भी विचारणीय हैं।
प्रश्न : मुक्त आत्मा के जब इन्द्रियां नहीं होती हैं तो वह अतीन्द्रिय केवलज्ञान से पदार्थों को कैसे जानता है ?
उत्तर : जैन दार्शनिकों ने इस प्रश्न का उत्तर देते हए कहा है कि केवलज्ञान दर्पण की तरह है। जिस प्रकार दर्पण के सामने पदार्थों के होने से ही पदार्थ उसमें अपने आप झलकने लगते हैं उसी प्रकार केवलज्ञान में समस्त पदार्थ प्रतिबिम्बित होते हैं। अतः केवली को पदार्थों के जानने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा भी है : अपने आत्मा को जानने से सर्वज्ञ तीन लोक को जानता है, क्योंकि आत्मा के स्वभाव रूप केवलज्ञान में यह लोक प्रतिबिम्बित हो रहा है ।
प्रश्न : अनन्तज्ञान दर्पण की तरह है तो उसमें सभी पदार्थ एक साथ छोटे-बड़े कैसे प्रतिबिम्बित हो सकते हैं ?
उत्तर : उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर यह है कि आत्मा ज्ञान प्रमाण है और १. अष्टसहस्री, पृ० ६९ । २. वही। ३. न्यायकुमुदचन्द्र, पृ० ८३६ । ४. प्रवचनसार, गा० ९९ ।
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