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बन्ध और मोक्ष : २७१
गति में सहायक निमित्त कारण रूप धर्मास्तिकाय द्रव्य का अभाव होता है। उमास्वामी ने कहा भी है-“धर्मास्तिकायाभावात्" ।' ___लोकान्त में जाकर सभी मुक्त जीव एक स्थान-विशेष पर विराजमान रहते हैं, जिसे आगमिक शब्दावली में 'सिद्ध शिला' कहते हैं।
मुक्त जीव संसार में वापस नहीं आते हैं : जैनागमों में मस्करी (मंखलि) दार्शनिकों का उल्लेख मिलता है, जो आजीविक-मतानुयायी माने जाते हैं। इस मत का तथा सदाशिव-मतानुयायियों का सिद्धान्त है कि मुक्त जीव संसार में धर्म का तिरस्कार देख कर उसके संस्थापनार्थ मोक्ष से पुनः संसार में वापस आ जाते हैं। कहा भी है : “सदाशिववादी१०० कल्प प्रमाण समय व्यतीत होने पर जब जगत् शून्य हो जाता है, तब मुक्त जीव का संसार में वापस होना मानते हैं।"
जैन दार्शनिक उपर्युक्त मत से सहमत नहीं है । इनका कहना है कि जीव एक बार संसार के कारणभूत भावकर्म और द्रव्य-कम का सर्वथा विनाश करके मोक्ष पाने के बाद वहाँ से कभी वापस नहीं आते हैं। सांख्य और वेदान्त दार्शनिक भी मुक्त जीवों का वापस आना नहीं मानते हैं । ५ जैन आचार्यों का मत है कि संसार के कारणभूत मिथ्यादर्शनादि का मुक्त जीव में अभाव होता है, इसलिए वे संसार में पुनः वापस नहीं आते हैं । यदि कर्मों के अभाव में भी मुक्त जीव का संसार में आगमन माना जाए, तो कारणकार्य की व्यवस्था नष्ट हो जाएगी, जो अनुचित है। किसी स्थान-विशेष पर रखे हुए बर्तन आदि की तरह मुक्त जीव का संसार की ओर पतन मानना ठीक नहीं है। दूसरी बात यह है कि गुरुत्व स्वभाव वाले पौद्गलिक पदार्थ ऊपर से नीचे गिरते हैं, मुक्तात्मा में यह स्वभाव नहीं होता है । संसारी आत्मा कर्म-पुद्गलों के सम्बन्ध
१. तत्त्वार्थसूत्र, १०८ । २. विस्तृत विवेचन के लिए द्रष्टव्य-भगवती आराधना, ११३३; त्रिलोकसार,
५५६-५८, तिलोयपण्णत्ति, ८।६५२-६५८ ।। ३. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), जीवप्रबोधिनी टीका, गा० ६९ । स्याद्वादमञ्जरी,
पृ० ४२ । ४. द्रव्यसंग्रह, गा० १४, पृ० ४० । मुण्डकोपनिषद्, ३।२।६ । स्याद्वादमञ्जरी, .
हिन्दी टीका०, का० २९ । ५. सांख्यदर्शन, ६।१७ । वेदान्तसूत्र, ४।४।२२ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक, १०।४।४, पृ० ६४२ । तत्त्वार्थसार, ८।८।११ । ७. तत्त्वार्थवार्तिक, १०।४।८, पृ. ६४३ ।
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