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२७२ : जैनदर्शन में आत्म-विचार से गुरुत्व रूप हो जाती है और उनका मुक्तात्मा में अभाव होता है। अतः अगुरुलघु स्वभाव वाली आत्मा की मोक्ष से च्युति उस प्रकार से नहीं होती है, जिस प्रकार गुरुत्व स्वभाव वाले आम का डाल से टपकना होता है या पानी भर जाने से जहाज का डूबना हो जाता है।'
मुन्तात्मा को ज्ञाता और द्रष्टा होते हुए भी, वीतराग होने के कारण करुणादि के उत्पन्न न होने से, कर्मबन्ध नहीं होता, इसलिए भी मुक्तात्मा संसार में वापस नहीं आता है ।२ मुक्त जीव के संसार में न आने का एक कारण यह भी है कि उसे अपरिमित अनाकुल सुख की उपलब्धि होती है । इसके अतिरिक्त जो आत्मा एक बार कर्मरहित हो गया है, वह पुनः कर्मों से युक्त उसी प्रकार नहीं होता, जिस प्रकार एक बार सोने से किट्टकालिमादि निकल जाने पर पुनः सोना उससे युक्त नहीं होता ।' मुक्त जीव का संसार में पुनः वापस आना माना जाए, तो संसारी और मुक्त जीवों में कोई अन्तर नहीं रहेगा। अतः सिद्ध है कि मुक्त जीव वापस नहीं आते ।
आकाश में अवगाहन-शक्ति है, इसलिए थोड़े-से आकाश में अनेक सिद्ध उसी प्रकार से रह सकते हैं, जिस प्रकार अनेक मूर्तमान् दीपक का प्रकाश अल्प स्थान में अविरोध रूप से रहता है । अतः मुक्त जीवों में परस्पर अविरोध नहीं पाया जाता।
मुक्त जीव का पुनरागमन न होने पर भी संसार को जीव-शून्यता का अभाव : संसार में मुक्त जीवों का पुनरागमन मानने वालों का कथन है कि मोक्ष से मुक्त जीव वापस नहीं आते हैं और जीवराशि सीमित है, (उसमें किसी तरह की वृद्धि नहीं होती), तो एक दिन ऐसा आ सकता है, जब सब जीव मुक्त हो जायेंगे और यह संसार जीवों से खाली हो जायगा ।६ किन्तु उपर्युक्त प्रश्न ठीक नहीं है क्योंकि जितने जीव मोक्ष जाते हैं उतने ही जीव
१. तत्त्वार्थसार, ८।११-२ । तत्त्वार्थवार्तिक, १।९।८, पृ० ६४३ । २. तत्त्वार्थवार्तिक, १०।४।५-६ । ३. योगसार, ७८। ४. वही, ९।५३ । ५. (क) तत्त्वार्थवार्तिक, १०।४।९, पृ० ६४३ । ।
(ख) तत्त्वार्थसार, ८।१३-१४ । ६. नन्वनादिकालमोक्षगच्छतां जीवानां जगच्छून्यं भवतीति ।
-द्रव्यसंग्रह, ३७।१४१ ।
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