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बन्ध और मोक्ष : २६७ अष्टगुणों से युक्त परम, लोकान में स्थित, नित्य होते हैं ।' धवला में भी कहा गया है, 'जिन्होंने अनेक स्वभाव वाले अष्टकर्मों का नाश कर दिया है, जो तीन लोक के मस्तक के शिखर स्वरूप हैं, दुःखों से रहित हैं, सुख रूपी सागर में निमग्न हैं, निरंजन हैं, नित्य है, आठ गुणों से युक्त हैं, निर्दोष हैं, कृतकृत्य है, सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं, वज्रशिला से निर्मित अभग्न प्रतिमा के समान अभेद्य, आकारविहीन और अतीन्द्रिय हैं । भगवती आराधना में आचार्य शिवकोटि ने कहा है कि अकषायत्व, अवेदत्व, अकारकत्व, शरीर-रहित्व, अचलत्व, अलेपावत्व ये सिद्धों के आत्यंतिक गुण होते हैं । ३
मोक्ष में जीव का असद्भाव नहीं होता : बौद्ध दार्शनिकों ने मोक्ष में जीव का अभाव माना है। जिस प्रकार दीपक के बुझ जाने से प्रकाश का अन्त हो जाता है, उसी प्रकार कर्मों के क्षय हो जाने से निर्वाण में चित्तसन्तति का विनाश हो जाता है । अतः मोक्ष में जीव का अस्तित्व नहीं होता है।
बौद्धों के उपर्युक्त मत की मीमांसा करते हए जैन दार्शनिकों ने कहा है कि मोक्ष में जीव का अभाव नहीं होता है। विद्यानन्दी का कहना है कि मोक्ष में जीव के अभाव को सिद्ध करने वाला न तो कोई निर्दोष प्रमाण है और न कोई सम्यक् हेतु है । इसलिए मोक्ष में जीव का अभाव कहना अनुचित है। दूसरी बात यह है कि जीव एक भव से भवान्तर रूप परिणमन करता है । जिस प्रकार देवदत्त के एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाने पर उसका अभाव नहीं माना जाता है, उसी प्रकार जीव के मुक्त होने पर उसका अभाव नहीं होता।" भट्टाकलंक देव ने बौद्धमत की समीक्षा करते हुए कहा है कि दीपक के बुझ जाने पर दीपक (प्रकाश) का विनाश नहीं होता, बल्कि उस दीपक के तैजस परमाणु अन्धकार में बदल जाते हैं। इसी प्रकार मोक्ष होने पर जीव का विनाश नहीं होता है। कर्मों के क्षय होते ही आत्मा अपनी शुद्ध चैतन्यावस्था में परिवर्तित हो जाती है। कुन्दकुन्द ने भी कहा है कि मोक्ष में जीवों का असद्भाव मानने
१. नियमसार, गा० ७२ । २. धवला : १११११, सू० १, गाथा २६-२८ । ३. भगवती आराधना, गाथा २१५७ । ४. प्रो० हरेन्द्रप्रसाद सिन्हा, भारतीय दर्शन, पृ० १२७ । ५. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, १।१।४ । प्र० र० प्र०, टीका, २११२९० । ६. तत्त्वार्थवार्तिक, १०।४।१७, पृ० ६४४ । ७. पञ्चास्तिकाय, गा० ४६ ।
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