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________________ २६२ : जनदर्शन में आत्म-विचार लिए उपशमन श्रेणी का और क्षय करने के लिए क्षपक श्रेणी का आरोहण करते हैं । क्षयक श्रेणी का आरोहण करने वाला दसवां गुणस्थानवर्ती साधक समस्त कषायों का क्षय करके सीधा बारहवें गुणस्थान में पहुँच जाता है', दसवें गुणस्थानवर्ती साधक में कुछ न्यून यथाख्यातचारित्र होता है ।२ ११. उपशान्तमोह अथवा उपशान्तकषाय गुणस्थान : यह आत्म-विकास की वह अवस्था है, जहाँ समस्त मोहनीय कर्म का उपशम होता है । इस गुणस्थानवर्ती साधक को समस्त कषायों और नोकषायों का शमन उसी प्रकार हो जाता है, जैसे निर्मली संयुक्त जल का कीचड़ या शरदऋतु में तालाब के जल से कीचड़ के नीचे बैठ जाने से पानी स्वच्छ हो जाता है। समस्त मोहनीय कर्म के शमन हो जाने से आत्मा विशुद्ध हो जाता है । २ अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् कषाय और नोकषाय का उदय होने से इस गुणस्थानवर्ती आत्मा का पतन होता है। यहाँ साधक के ज्ञानावरण-दर्शनावरण कर्म रहते हैं। इसलिए षट्खण्डागम में इसे उपशान्त वीतराग छद्मस्थ कहा गया है। १२. क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान : क्षपकश्रेणी पर चढ़ने वाले मुनि के समस्त मोहनीय कर्मों के क्षय होने से आत्मा में उत्पन्न होने वाली विशुद्धि आगम में क्षीणकषाय-गुणस्थान के नाम से जानी जाती है । आचार्य नेमिचन्द्र ने कहा भी है, 'मोहकर्म के निःशेष क्षीण हो जाने से जिसका चित्त स्फटिक के निर्मल बर्तन में रखे हुए जल की तरह निर्मल हो गया है, इस प्रकार के निर्ग्रन्थ साधु को वीतरागियों ने क्षीण कषाय कहा है।५ अकलंकदेव ने तत्त्वार्थवार्तिक १. गुणस्थानक्रमारोह, श्लोक ७३ । २. -- । सो सुहमसाम्पराओ जहखाएणूणओ किंचि । -गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गा० ६० । ३. (क) वही, गाथा ६१ । (ख) उपशांताः साकल्येन उदयायोग्याः कृताः कषायाः नोकषायाः यन असो उपशान्तकषायाः इति निरुक्त्तया अत्यन्त प्रसन्न चित्तता सूचिता ।-गोम्मट सार (जीवकाण्ड), मन्दप्रबोधिनी टीका, पृ० १८८ । ४. जिदमोहस्स दु जइया खीणो मोहो हविज्ज साहुस्स । तइया ह खीणमोहो भण्णदि सो णिच्छयविहिं ।-समयसार : गाथा ३३ । (ख) द्रव्यसंग्रह टीका, गा० १३, पृ० ३५ । ५. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गाथा ६२ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक, ९।१।२२, पृ० ५९० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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