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________________ बन्ध और मोक्ष : २५५ ३. मिश्र गुणस्थान : मिश्र गुणस्थान को सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान भी कहते हैं।' आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार जीवकांड में कहा है कि जिस प्रकार दही और गुड़ को भली-भाँति मिला देने पर उन दोनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है और उसका स्वाद न केवल खट्टा होता है और न केवल मीठा ही बल्कि खट्टा-मीठा मिश्रित स्वाद होता है । इसी प्रकार तीसरे गुणस्थान में सम्यक्त्व-मिथ्यात्व रूप मिश्रित परिणाम होते हैं। इस प्रकार के मिश्रित परिणाम होने का मूल कारण सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति का उदय होना है ।२ मिश्र गुणस्थानवी जीव एक हो समय में सर्वज्ञोपदिष्ट तथा असर्वज्ञोपदिष्ट सिद्धान्तों में मिश्ररूप श्रद्धा करता है । भट्टाकलंकदेव ने भी तत्त्वार्थवार्तिक में मिश्रगुणस्थान का यही स्वरूप प्रतिपादित किया है। इस गुणस्थान की आगम में निम्नांकित विशेषताएं उपलब्ध हैं (१) मिश्र गुणस्थानवर्ती जीव को तत्त्वों में युगपत् श्रद्धान और अश्रद्धान प्रकट होता है। (२) इस गुणस्थानवर्तो के न सकल-संयम होता है और न देश-संयम । (३) आयुकर्म का बन्ध नहीं होता है । (३) इस गुणस्थान में जीव की मृत्यु नहीं होती है । सम्यक्त्व या मिथ्यात्व रूप परिणामों के होने पर ही मृत्यु होती है । (५) इस गुणस्थान के प्राप्त करने से पूर्व सम्यक्त्व या मिथ्यात्व रूप परिणामों में से जिस परिणाम के मौजूद रहने पर आयु कर्म का बन्ध किया होगा, वैसा परिणाम होने पर ही उसका मरण होता है। ६. यहाँ मारणान्तिक समुद्घात भी नहीं होता है । ७. इस गुणस्थान में सिर्फ क्षायोपशमिकभाव ही होता है। इसका विवेचन धवला में विस्तृत रूप से हुआ है । १. षट्खंडागम, १११११, सूत्र ११ । २. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गा० २१-२२ । ३. मिस्सुदये-तच्चमियरेण सद्दहदि एक्कसमणे । -लाटी संहिता, गा० १०७ । ४. सम्यमिथ्यात्वसज्ञिकाया : प्रकृतेरुदयात् आत्माक्षीणाक्षीण मदशक्ति-क्रोद्रवोपरिणामवत् तत्त्वार्थश्रद्धानाश्रद्धानरूपः ।-तत्त्वार्थवार्तिक, ९।१।१४, पृ० ५८९। ५. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गाथा २३-२४ । ६. षट्खण्डागम धवला टीका, ११११, सूत्र ११, पृ० १६८-६९ । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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