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________________ बन्ध और मोक्ष : २४९ और स्वभाव की आराधना के अर्थ में 'चारित्र' शब्द का प्रयोग उपलब्ध है। सर्वार्थसिद्धि में पूज्यपाद ने चारित्र की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है कि जो आचरण करता है, जिसके द्वारा आचरण किया जाता है अथवा आचरण करना मात्र चारित्र है ।२ मोक्षपाहुड़ में पुण्य और पाप के त्याग को चारित्र कहा गया है । पुण्य और पाप रूप क्रियाएँ हैं, इनसे संसार में आवागमन होता है अर्थात् पुण्यपाप क्रियाओं के करने से कर्मों का आस्रव होता है जिससे संसार में बार-बार आना पड़ता है। यही कारण है कि आचार्यों ने मन, वचन, काय तथा कृत, कारित और अनुमोदना पूर्वक संसार के कारणभूत क्रियाओं के त्याग को चारित्र कहा है। चारित्र के भेद : तत्त्वार्थसूत्र' में चारित्र के निम्नांकित पाँच भेद बतलाये गये हैं : (१) सामायिक, (२) छेदोपस्थापना, (३) परिहारविशुद्वि, (४) सूक्ष्मसांपराय, और (५) यथाख्यात ।। (७) तप : इच्छाओं का निरोध करना तप है। तप से कर्मों का आना भी रुकता है और पुराने कर्मों की निर्जरा भी होती है। आचार्य कुन्दकुन्द ने तप का स्वरूप बतलाते हुए कहा है कि “विषय और कषाय को नष्ट करने का भाव करना, ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा आत्मा का चिन्तन भाव करना, तप है। सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थवार्तिक में भी कहा गया है कि "शक्ति को न छिपा कर मोक्षमार्ग के अनुकूल शरीर को क्लेश (कष्ट) देना तप है" १९ ९।१७।७, पृ० ६१६ । (ग) तदेतच्चारित्रं पूर्वास्रव निरोधकारणत्वात्परम संवरहेतुरवसेयः । वही, ९।१८।१४।। १. नयचक्र, गा० ३५६ । २. सर्वार्थसिद्धि, १११ ।। ३. तंचारित्तं भणियं परिहारो पुण्णपावाणं ।-मोक्षपाहुड़, गा० ३७ । ४. (क) सर्वार्थसिद्धि, १११ । (ख) १।१।३ । (ग) बहिरब्भंतरकिरियारोहो भवकारणपणासटें। णाणिस्स जं जिणुत्तं तं परमं सम्मचारित्तं ।।-द्रव्यसंग्रह, गा० ४६ । (घ) तत्त्वानुशासन, का० २७ । ५. तत्त्वार्थसूत्र, ९।१८ और भी द्रष्टव्य, चारित्रभक्ति, गा० ३-४ । ६. इच्छानिरोधस्तपः-धवला, पु० १३, खं० ५, भाग ४, सूत्र २६ । ७. तपसा निर्जरा च-तत्त्वार्थसूत्र, ९।३। ८. बारस अणुवेक्खा , गा० ५७ । ९. अनिगूहितर्वीर्यस्यमार्गविरोधिकायक्लेशस्तपः । (क) सर्वार्थसिद्धि, ६।२४; (ख) तत्त्वार्थवार्तिक, ६।२४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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