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________________ २४० : जैनदर्शन में आत्म- विचार अज्ञान है | समयसार में उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया गया है कि राग ही बन्ध का वास्तविक कारण है । इसी ग्रन्थ में उन्होंने राग, द्वेष और मोह को तथा अन्यत्र मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय और योग को बन्ध का कारण माना है । आचार्य नेमिचन्द्र ने भी गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ) में उपर्युक्त मिथ्यात्व आदि चार कारणों को बन्ध का कारण बतलाया है । मूलाचार में वट्टकेर ने बन्ध के मिथ्यादर्शन, अविरति, कषाय, योग और आयु का परिणाम - ये पाँच कारण बतलाये हैं । " आयु के परिणाम को बन्ध का कारण वट्टकेर के अलावा अन्य कोई जैन दार्शनिक नहीं मानता है । रामसेन ने तत्त्वानुशासन में मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र को बन्ध का कारण माना है । ६ स्थानांग, समवायांग एवं तत्त्वार्थसूत्र में कर्मबन्ध के पांच कारण माने गये हैं :- (१) मिथ्यादर्शन, (२) अविरति, (३) प्रमाद, (४) कषाय और ( ५ ) योग । ७ यांग में कषाय और योग को कर्मबन्ध का कारण कहा गया है ।" योग से प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्ध होता है तथा कषाय से स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध होता है । " गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ) १° द्रव्यसंग्रह " आदि में भी यही कहा गया है । समवा १० (१) मिथ्यादर्शन : मिथ्यादर्शन का अर्थ विपरीत श्रद्धान होता है । दूसरे शब्दों में सम्यग्दर्शन से उल्टा मिथ्यादर्शन है । सम्यग्दर्शन से तत्त्वों का यथार्थ १. समयसार, गा० २३७ - २४१ । २. समयसार, गाथा १७७ । ३. वही, गाथा १०९ (ख) बारस अणुपेक्खा, गा० ४७ T ४. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गा० ७८६ । ५. मिच्छादंसण अविरदि कसाय जोगा हवंति बंधस्स । आऊसज्झवसाणं हेदव्वो ते दु णायव्वा ।। मूलाचार, गाथा १२१९ । ६. स्यु मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्राणि समासतः । बन्धस्य हेतवोऽन्यस्तु त्रयाणामेव विस्तरः ॥ - तत्त्वानुशासन, ८। ७. (क) जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, पृ० ४३२ पर उद्धृत | (ख) तत्त्वार्थ सूत्र, ९।१ । ८. समवायांग, २ । ९. जोगा पर्याड-पएसा ठिदिअणुभागा कसायदो कुणदि । - सर्वार्थसिद्धि, ८।३ । १०. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गाथा २५७ । ११. पडिट्ठिदि - जोगा पर्याडपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होंति ॥ - द्रव्यसंग्रह, गा० ३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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