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________________ २३८ : जैनदर्शन में आत्म-विचार पूज्यपाद ने कहा है कि कर्म की इस विशेष शक्ति का नाम अनुभव है। जिस प्रकार बकरी, गाय, भैस आदि के दूध में अलग-अलग तीव्र, मन्द आदि रस (शक्ति) विशेष होता है, उसी प्रकार कर्म-पुद्गलों की अपनी विशेष शक्ति का होना अनुभव है।' अनुभागबन्ध के भेद : १. उत्कृष्ट अनुभागबन्ध, २. जघन्य अनुभागबन्ध । आध्यात्मिक विशुद्ध परिणामों के कारण शुभ प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है । संक्लेश रूप अत्यधिक अशुभ परिणामों की अशुभ प्रकृतियों का अनुबन्ध होता है। शुभ प्रकृतियों का जघन्य अनुभागबन्ध संक्लेश परिणामों (भागों) से और अशुभ प्रकृतियों का जघन्य अनुभागबन्ध मन्द कषाय रूप विशुद्ध परिणामों से होता है। स्वमुख और परमुख की अपेक्षा से भी अनुभागबन्ध दो प्रकार का होता है । पंचसंग्रह में अनुभागबन्ध के चौदह भेदों का उल्लेख किया गया है। (ई) प्रदेशबन्ध : एक पुद्गल परमाणु जितना स्थान घेरता है, उसे प्रदेश कहते हैं । उपचार से पुद्गल परमाणु भी प्रदेश कहलाता है। अतः पुद्गल कर्मों के प्रदेशों का जीव के प्रदेशों के साथ बन्ध होना, प्रदेशबन्ध कहलाता है । सर्वार्थसिद्धि में कहा है कि संख्या का निश्चय (अवधारण) करना प्रदेश है अर्थात् कर्म रूप में परिणत पुद्गल स्कन्धों के परमाणुओं की जानकारी करके निश्चय करना, प्रदेशबन्ध कहलाता है।" तत्त्वार्थसूत्र में प्रदेशबन्ध का स्वरूप बतलाते हुए उमास्वामी ने कहा है कि कर्म प्रकृतियों के कारणभूत प्रति संयोग विशेष के कारण सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाही और स्थित अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु सब आत्मप्रदेशों में चिपक कर रहते हैं, इसी को प्रदेशबन्ध कहते हैं । गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) में भी यही कहा गया है । १. सर्वार्थसिद्धि, ८।३। २. (क) गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गा० १६३ । (ख) पंचसंग्रह (प्रा.) गा० ४।४५१-४५२ । ३. सर्वार्थसिद्धि, ८।२१ । ४. सादि अणादिय अट्ठ पसत्थिदरपरूवणा तहा सण्णा । पच्चय विवाय देसा सामित्तणाह अणुभागो ॥-पंचसंग्रह, गा० ४।४४१ । ५. सर्वार्थसिद्धि, ८१३, पृ० ३७९ (ख) तत्त्वार्थवात्तिक, ८।३।७।। ६. तत्त्वार्थसूत्र, ८२४॥ ७. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गाथा, १८५-२६० । ...... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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