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________________ १० : जैनदर्शन में आत्म-विचार श्वेता० उ० (५९) में आत्मा को अंगुष्ठमात्र, सुई की सूक्ष्म, तथा बाल के अगले हिस्से के हजारवें भाग के बराबर जीवात्मा को लिंगहीन बतलाते हुए कहा है कि जीवात्मा न स्त्री है, न पुरुष है, न नपुंसक है । कर्मानुसार भिन्न-भिन्न शरीर प्राप्त करता है' । जीवात्मा कर्मों का कर्ता, भोक्ता, सुखादि गुण वाला, प्राणों का स्वामी है ? | आत्मा की चार अवस्थाएं : माण्डूक्योपनिषद् में आत्मा का विश्लेषण करके जागृति, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय इन चार अवस्थाओं का विवेचन किया गया है | 3 बृहदारण्यक और प्रश्नोपनिषद् में भी इनका उल्लेख उपलब्ध है । आत्मा के पांच कोश : तैत्तिरीयोपनिषद् में आत्मा के पाँच कोश - अन्नमय, प्राणमय, मनोमय विज्ञानमय तथा आनन्दमय कोश का वर्णन किया गया है ।" इस प्रकार उपनिषदों में वर्णित आत्म-स्वरूप पर विचार करने से ज्ञात होता है कि ऋषियों का चितन स्थूल से सूक्ष्म की ओर उन्मुख था । नोक के बराबर बताया गया है । (घ) उपनिषदों में आत्मा और ब्रह्म की अवधारणाओं का बराबर महत्त्व उपनिषदों में आत्मा और ब्रह्म परम तत्त्व माने गये हैं । ब्रह्मतत्त्व संसार का मूल कारण माना गया है । "ब्रह्म" शब्द की व्युत्पत्ति से भी यही सिद्ध होता है, क्योंकि 'ब्रह्म' 'बृह' धातु से निकला है, जिसका अर्थ बढ़ना या विकसित होना है । ब्रह्म सम्पूर्ण विश्व में स्वतः विकसित हो जाता है । ब्रह्म से विश्व की केवल उत्पत्ति ही नहीं होती है । अन्त में यह विश्व उसी ब्रह्म में विलीन हो जाता है | अतः ब्रह्म विश्व का आधार है । तैत्तिरीय उपनिषद् की तीसरी वल्ली में भृगु अपने पुत्र वरुण से प्रश्न के उत्तर में कहता है कि " वह जिससे इन सब भूतों की उत्पत्ति हुई और उत्पन्न होने के पश्चात् जिसमें ये जीवन धारण करते हैं और वह जिसके अन्दर ये सब मृत्यु के समय समा जाते हैं, वही ब्रह्म है ।" इसप्रकार सिद्ध किया गया है कि ब्रह्म १. श्वेताश्वतरोपनिषद्, ५।८-५ २. ब्रही, ५७ ३. माण्डूक्योपनिषद्, २ ४. ( क ) बृहदारण्यक, ४१२१४ । (ख) प्रश्नोपनिषद्, ४/५/६ ५. तैत्तिरीयोपनिषद्, २1१-५ ६. भारतीयदर्शन : डा० राधाकृष्णन्, प्रथम भाग, पाद टिप्पणी, पृ० १४९-५० ७. तैत्तिरीयोपनिषद्, ३११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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