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________________ आत्मा और कर्म-विपाक : २३३ भूत, प्रेतों को इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान नहीं होना चाहिए । अतः व्यन्तरों का प्रत्यभिज्ञान पुनर्जन्म को सिद्ध करता है। पूर्वभव के स्मरण से पुनर्जन्म-सिद्धि : पूर्वभव का स्मरण पुनर्जन्म को सिद्ध करने का ज्वलन्त प्रमाण है । नारकी जीवों के दुःखों का वर्णन करते हुए पूज्यपाद ने कहा है कि “पूर्वभव के स्मरण होने से उनका वैर दृढ़तर हो जाता है, जिससे वे कुत्ते-गीदड़ की तरह एक दूसरे का घात करने लगते हैं।" योगसूत्र के कथन से भी सिद्ध होता है कि आत्मा का पुनर्जन्म होता है। यदि पुनर्जन्म न हो तो पूर्वभव के स्मरण-कथन करने का कोई अर्थ नहीं होता है। जब तक दूसरा जन्म न माना जाए, तब तक 'पूर्वभव' नहीं कहा जा सकता है। पूर्वभव-स्मरण की अनेक घटनाएं समाचारपत्रों में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। उपर्युक्त तर्कों के अलावा और भी अनेक युक्तियों के द्वारा भारतीय चिन्तकों ने पुनर्जन्म सिद्ध किया है। कर्मवाद-सिद्धान्त भारतीय दर्शन का, विशेष रूप से जैन दर्शन का प्रमुख, अपूर्व एवं अलौकिक सिद्धान्त है। जीवन की समस्त समस्याओं का विश्लेषण कर्म सिद्धान्त के आधार पर करना जैन दर्शन को निजी विशेषता है। नैतिक व्यवस्था की व्याख्या कर्म सिद्धान्त के द्वारा ही सम्भव है। जैन दर्शन का कर्म सिद्धान्त ईश्वरवाद का खण्डन नहीं करता है, बल्कि जगत्-कर्तृत्व का खंडन करता है । कर्मवाद न तो समाज-सेवा का विरोधी है, जैसा कुछ आलोचक कहते हैं, और न यह सिद्धान्त भाग्यवाद का पोषण ही करता है। ___कर्मवाद-सिद्धान्त और पुनर्जन्म-प्रक्रिया के ज्ञान से जीव को न केवल नैतिक बनने की प्रेरणा मिलती है, बल्कि वह आत्मा को अशुद्धता को क्रमशः दूर कर शुद्धात्मा की प्राप्ति के लिए भी प्रयत्नशील हो जाता है। इसी की प्राप्ति हो जीव का परम उद्देश्य है। १. सर्वार्थसिद्धि, ३।४, पृ० २०८ । २. 'आज' दिनांक २४-९-१९६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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