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२२२ : जैनदर्शन में आत्म-विचार
हयान स्टीवेंसन ने कहा था कि पुनर्जन्म को अन्धविश्वास की संज्ञा देकर उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। इस पर गम्भीर अनुसन्धान होना चाहिए । प्रो० स्टीवेंसन ने बताया कि मुझे कई ऐसे मामले देखने को मिले, जिनमें व्यक्ति उन्हीं बीमारियों से ग्रस्त दिखाई दिये, जो उन्हें पूर्वजीवन में थीं। उन्होंने बताया कि भारत में बच्चों को बहुधा अपने पूर्वजोवन की बातें याद रहती हैं, क्योंकि उन्हें पूर्वजीवन की बातें बताने से रोका नहीं जाता। बौद्ध देशों में भी पूर्वजन्म की बहुत उपयोगी घटनाएँ देखने को मिलती हैं। इन देशों में अधिक ब्यौरा दिये जाने से पुनर्जन्म की घटनाओं की आसानी से छानबीन की जा सकती है । कई मामलों में पुनर्जन्मित बच्चों में भय और भावुकता की भावना अधिक दिखाई देती है। कुछ ज्ञात मामलों में सभी पुनर्जन्मित अपने पूर्वजीवन की बातें नहीं भले थे, लेकिन उनकी स्मृति इतनी धूमिल थी कि वे अनुसन्धान में सहायक नहीं हो सकते थे ।
पुनर्जन्म के दावे की अधिकांश घटनाओं में प्रोफेसर स्टीवेंसन को यह देखने को मिला कि पूर्वजीवन में उन्हें किसी न किसी दुर्घटना या हिंसा का शिकार होना पड़ा था। ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु का कारण आग्नेयास्त्र देखकर या उसकी
आवाज सुनकर या बिजली गिरने में देखा गया है- डॉ० स्टीवेंसन का • कहना है कि इससे इस मान्यता का खण्डन होता है कि पुनर्जन्म लेने वाले अपने पूर्व पापों का प्रायश्चित्त करते हैं।
प्रो० स्टीवेंसन ने बर्मा, थाईलैंड, लेबनान, तुर्की, सीरिया, श्रीलंका तथा कई यूरोपीय देशों में पुनर्जन्म की घटनाओं का अध्ययन किया है और उनका विश्वास है कि पुनर्जन्म के सिद्धान्त के खण्डन का पुष्ट आधार नहीं है । भारत में उन्होंने २० मामलों का अध्ययन किया, उनमें पूर्वजीवन के सात परिवार देखे और पूर्वजन्म की पुष्टि की। प्रो० स्टीवेंसन का कहना है कि पुनर्जन्म का मामला देखते ही बच्चों से छोटी उम्र में ही पूछताछ करनी चाहिए, क्योंकि ५-६ वर्ष के होने पर वे पूर्वजीवन की बातें भूलने लगते हैं।
२. पुनर्जन्म-सिद्धान्त की दूसरी समीक्षा में कहा जाता है कि पुनर्जन्म सिद्धान्त वंश-परम्परा का विरोधी है। क्योंकि वंश-परम्परा सिद्धान्तानुसार प्राणियों का मन तथा शरीर अपने माता-पिता के अनुरूप होता है । इस आक्षेप का परिहार यह किया गया है कि यदि पूर्वजन्म के कर्मों का फल न
१. दैनिक 'आज', २४ अक्तूबर, १९७२, पृ० ७, कालम ४।। २. दैनिक आज, २४ अक्तूबर, १९७२, पृ० २, कालम ६।।
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