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________________ २०८ : जैनदर्शन में आत्म-विचार नामकर्म के भेद : षट्खण्डागम में नाम कर्म के निम्नांकित बयालीस भेद बतलाए गए हैं : १. गति नामकर्म : इसके नरकादि चार भेद हैं । २. जाति नामकर्म : जिस नामकर्म के उदय से सादृश्यता के कारण जीवों का बोध होता है, उसे जाति नामकर्म कहते हैं ।" एकेन्द्रियादि इसके पाँच भेद हैं । ३. शरीर नामकर्म : औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर का निर्माण करने वाला कर्म, शरीर नामकर्म कहलाता है । २ ४. आंगोपांग नाम कर्म : जिसके उदय से अंग और उपांग का भेद होता है, वह अंगोपांग नामकर्म कहलाता है । इस कर्म के उदय से ही अंग-दो हाथ, दो पैर, नितम्ब, पीठ, हृदय और मस्तक तथा उपांग अर्थात् मूर्धा, कपाल, मस्तक, ललाट, शंख, भौंह, कान, नाक, आँख, अक्षिकूट, ठुड्ढी (हनु), कपोत, ऊपर और नीचे के ओष्ठ, चाप (सृक्वणी), तालु, जीभ आदि की रचना होती है ।" ५. शरीर बन्धन नामकर्म : पूर्व में गृहीत तथा वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले शरीर पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध जिस कर्म के उदय से होता है, वह शरीर बन्धन नामकर्म कहलाता है । शरीर की तरह इसके पाँच भेद हैं । ६. संघात नामकर्म : अलग-अलग पदार्थों का एक रूप होना संघात है । जिस कर्म के उदय से औदारिकादि शरीरों की संरचना होती है, वह संघात नामकर्म कहलाता है ।" शरीर के पाँच भेद होने से संघात नामकर्म के भी पांच भेद हैं । ६ ७. शरीर संस्थान नामकर्म : संस्थान का अर्थ आकृति है । जिस कर्म के उदय से औदारिकादि शरीरों की विविध - त्रिकोण, चतुष्कोण और गोल आदि आकृतियों का निर्माण होता है, उसे जैन आचार्यों ने संस्थान कहा है । इसके छह भेद होते हैं १. धवला, १/३/५/५, सू० १०१, पृ० ३६३ । २. यदुदयादात्मनः शरीरनिर्वृत्तिस्तच्छरीरनाम । - सर्वार्थसिद्धि, ८1११, पृ० ३८९ । -- ३. यदुदयादंगोपांगविवेकस्तदंगोपांगनाम । - वही, ८1११, पृ० ३८९ । ४. धवला, ६।१।९-११ सू० २८, पृ० ५४ । ५. सर्वार्थसिद्धि, ८।११, पृ० ३९० । ६. षट्खण्डागम, ६।१।९-११, सूत्र ३३, पृ० ७० । १. संस्थानमाकृतिः यदुदयादौदारिकादिशरीराकृतिनिर्वृत्तिर्भवति तत्संस्थाननाम | सर्वार्थसिद्धि, ५।२४, एवं ८।११, पृ० ३९० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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