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________________ २०६ : जैनदर्शन में आत्म-विचार (क) कषाय वेदनीय : स्वयं में कषाय करने, दूसरे में कषाय उत्पन्न करने, तपस्वी जनों के चारित्र में दूषण लगाने, संक्लेश पैदा करने वाले लिंग (वेष) और व्रत को धारण करने से कषाय चारित्र मोहनीय कर्म का आगमन होता है ।' कषाय का विवेचन कषाय मार्गणा में विस्तृत रूप से किया जा चुका है । (ख) नो-कषाय वेदनीय : नो-कषाय को अकषाय अर्थात् ईषत् कषाय भी कहते हैं। नो-कषाय के उदय से कषाय उत्तेजित होती है। हास्यादि इसके ९ भेदों का उल्लेख पहले किया जा चुका है । नो-कषाय के आस्रव के विविध कारणों का उल्लेख सर्वार्थसिद्धि तथा तत्त्वार्थवार्तिक में किया गया है । ५. आयु कर्म : किसी विवक्षित शरीर में जीव के रहने की अवधि को आयु कहते हैं। आचार्य पूज्यपाद ने कहा है कि जीव जिसके द्वारा नारकादि योनियों में जाता है, वह आयु कर्म है। भट्टाकलंक देव ने भी यही कहा है। इसकी तुलना कारागार से की गयी है। जिस प्रकार न्यायाधीश अपराधी को नियत समय के लिए कारागृह में डाल देता है, अपराधी की इच्छा होने पर भी अवधिपूर्ण होने के पहले वह नहीं छूटता है, इसी प्रकार आयु कर्म जीव को विवक्षित अवधि तक शरीर से मुक्त नहीं होने देता है ।" आयु कर्म के भेद : आयु कर्म चार प्रकार का है-१. नरकायु, २. तिर्यंचआयु, ३. मनुष्यायु, और ४. देवायु । ६ नरकायु के आस्त्रव के कारण : बहुत परिग्रह रखना और बहुत आरम्भ करना। तिर्यञ्च आयु के आस्रव के कारण : माया इसका कारण है। पूज्यपाद ने भी कहा है कि धर्मोपदेश में मिथ्या बातों को मिला कर प्रचार करना, शील रहित जीवन-यापन करना, मरण के समय मील-कपोल लेश्या एवं आर्तध्यान का होना । __मनुष्यायु के आस्रव के कारण : अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह तथा मृदु स्वभाव से मनुष्यायु कर्म का बंध होता है । १. सर्वार्थसिद्धि, ६।१४, पृ० ३३२ । २. (क) वही । (ख) तत्त्वार्थवार्तिक, ६।१४।३, पृ० ५२५ । ३. सर्वार्थसिद्धि, ८।३, पृ० ३७८ एवं ८।४, पृ० ३८० । ४. तत्त्वार्थसिद्धि, ८।४।२, पृ० ५६८ । ५. जीवस्स अवट्ठाणं करेदि आऊ हलिव्व णरं ।- गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ), गा० ११ । ६. तत्त्वार्थसूत्र, ८।१० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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