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________________ २०२ : जैनदर्शन में आत्म-विचार उठाये जाने पर जल्दी उठ जाता है और हल्की आवाज करने पर सचेत हो जाता है। निद्रावस्था में गिरता हुआ व्यक्ति अपने को संभाल लेता है, थोड़ा. थोड़ा कांपता रहता है और सावधान होकर सोता है ।' गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) में नेमिचन्द्राचार्य ने कहा है कि निद्रा के उदय से चलता-चलता मनुष्य खड़ा रह जाता है और खड़ा-खड़ा बैठ जाता है अथवा गिर जाता है । निद्रा की अधिक प्रवृत्ति का होना निद्रा-निद्रा है । ३ वीरसेन ने धवला में लिखा है कि इस कर्म के उदय से जीव वृक्ष के शिखर पर, विषम भूमि पर, अथवा किसी भी प्रदेश पर 'घुर'-'घुर' आवाज करता हुआ अति-निर्भय होकर गाढ़ी निद्रा में सोता है। दूसरों के द्वारा उठाये जाने पर भी नहीं उठता है।" गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) में कहा गया है कि निद्रा-निद्रा कर्म के उदय से जीव सोने में सावधान रहता है, लेकिन नेत्र खोलने में समर्थ नहीं होता है । जिस कर्म के उदय से आधे सोते हुए व्यक्ति का सिर थोड़ा-थोड़ा हिलता रहता है, उसे प्रचला प्रकृति कहते हैं । नेमिचन्द्र ने कहा है कि प्रचला के उदय से जीव किंचित् नेत्र को खोलकर सोता है, सोता हुआ कुछ जानता रहता है और बार-बार मन्द-मन्द सोता है। प्रचला की बार-बार प्रवृत्ति को पूज्यपाद ने प्रचला-प्रचला कहा है। गोम्मटसार (कर्मकांड) में कहा गया है कि इस कर्म प्रकृति के उदय से व्यक्ति के मुख से लार बहती है और उसके हस्तपादादि कांपते रहते हैं।९ वीरसेन ने भी कहा है कि जिस कर्म के उदय से बैठा हुआ व्यक्ति सो जाता है, सिर धुनता है तथा लता के समान चारों दिशाओं में लोटता है, वह प्रचला-प्रचला कर्म कहलाता है।१० जिस कर्म के उदय से आत्मा रोद्र कर्म करता है, उसे पूज्यपाद ने स्त्यान१. धवला, ६।१।९-११, सू० १६, पृ० ३२ । २. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गा० २४ । ३. सर्वार्थसिद्धि, ८७, पृ० ३८३ । ४. धवला, ६।१।९-११, सू० १६, पृ० ३१ । ५. गोम्मटसार (कर्मकांड), गाथा २३ ।। ६. धवला, १३१५।५, सूत्र ७५, पृ० ३५४ । ७. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गाथा २५ । ८. सर्वार्थसिद्धि, ८७, पृ० ३८३ । ९. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गाथा २४ । १०. धवला, १३।५।५, सू० ८५, पृ० ३५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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