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________________ आत्मा और कर्म-विपाक : १७७ है ।' शास्त्रवार्तासमुच्चय में स्वभाववादी अपने सिद्धान्त के पक्ष में कहते हैं कि प्राणी का गर्भ में प्रवेश होना, विविध अवस्थाओं को प्राप्त करना, शुभअशुभ अनुभवों का भोग करना स्वभाव के बिना सम्भव नहीं है, इसलिए समस्त घटनाओं का कारण स्वभाव ही है। संसार के समस्त पदार्थ स्वभाव से अपनेअपने स्वरूप में विद्यमान रहते हैं और अन्त में नष्ट हो जाते हैं ।२ कालादि सामग्री के विद्यमान रहने पर भी स्वभाव के बिना कुछ भी घटित नहीं होता है। स्वभावरूप विशेष कारण के अभाव में कार्य की विशेष उत्पत्ति मानने से अव्यवस्था हो जाएगी। अतः स्वभाव ही समस्त घटनाओं का कारण है । ३ नियतिवाद : नियतिवाद का उल्लेख सूत्रकृतांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, उपासकदशांग, गोम्मटसार" और शास्त्रवार्तासमुच्चय तथा बौद्ध त्रिपिटक' में हुआ है। जो जिस समय, जिसके द्वारा एवं जिस रूप में होना होता है, वह उस समय उसी कारण से और उसी रूप में अवश्य होता है। अतः नियति को समस्त वस्तुओं एवं घटनाओं का कारण मानना नियतिवाद है ।१० दीघनिकाय में मंखली गोशालक के नियतिवाद का विवेचन करते हुए कहा गया है कि प्राणियों को अपवित्रता का कोई कारण नहीं है । वे बिना कारण के अपवित्र होते हैं । पुरुषार्थ से १. बुद्धचरित, १८॥३१ । २. सर्वेभावाः स्वभावेन स्वस्वभावे तथा तथा । वर्तन्तेऽथ निवर्तन्ते कामचारपराङ्मुखाः ॥–शास्त्रवासिमुच्चय, २।५८ । ३. (अ) वही, २३१७१-१७२, -(ब) भगवद्गीता, ५।१४ । ४. सूत्रकृतांग, २।११६, २०१।१२ । ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक १५ । ६. उपासकदशांग, ६-७ । ७. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), ८९२ । ८. शास्त्रवार्तासमुच्चय, २११७३-१७६ । ९. दीघनिकाय, सामंजफलसुत्त ।। १०. जत्तु जदा जेण-जहा जस्स य णियमेण होदि तत्तु तदा। तेण तहा तस्स हवे इदि वादो णियदिवादो दु । -गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), ८८२। तुलनार्थ : यद् यदैव यतो यावत् तत् तदैव ततस्तथा । नियतं जायते न्यायात् क एतां बाधितुं क्षमः ॥ ... '-शास्त्रवार्तासमुच्चय, २।१७४ । १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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