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१७६ : जैनदर्शन में आत्म-विचार
कालवाद : कालवाद के अनुसार समस्त प्राणियों के सुख-दुःख तथा अन्य समस्त घटनाओं का प्रमुख कारण काल है। गोम्मटसार में कहा है कि "काल सबको उत्पन्न करता है, काल सबका विनाश करता है और सोते हुए प्राणियों को काल ही जगाता है" ।' हरिभद्र के शास्त्रवार्तासमुच्चय में भी कहा है कि 'जीवों का गर्भ में प्रविष्ट होना, किसी अवस्था को प्राप्त करना, शुभ-अशुभ अनुभव होना आदि घटनाएँ काल के आश्रित होती हैं, उसके बिना कोई घटना नहीं घट सकती है। काल भौतिक वस्तुओं को पकाता है, काल प्रजा का संहार करता है, काल सबके सो जाने पर जागता है। अतः कोई भी उसकी सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकता है। अन्य सामग्री के होने के बावजूद अनुकूल काल के अभाव में मूंग भी नहीं पक सकती है। इसी प्रकार गर्भ-प्रवेश आदि जितनी भी घटनाएँ होती हैं, वे काल के बिना सम्भव नहीं है। अतः विश्व की समस्त घटनाओं का कर्ता काल ही है । अथर्ववेद में काल को समस्त घटनाओं का सर्वशक्तिमान तथा प्रमुख कारण माना गया है । इसी प्रकार का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।
स्वभाववाद : स्वभाववादियों ने अपने सिद्धान्त में वही तर्क दिये हैं, जो कालवादियों ने दिये थे। सांसारिक घटनाओं का मूलभूत कारण स्वभाववाद के अनुसार स्वभाव है। गोम्मटसार में कहा है कि कांटे आदि को तीक्ष्ण (नुकीला) कौन करता है ? तथा कौन मृग-पक्षियों आदि में विविधता करता है ? इन सबका एकमात्र कारण स्वभाव है, कालादि नहीं। बुद्धचरित में भी यही कहा गया (ख) कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा, भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्यम् । संयोग एषां न त्वात्मभावादात्माऽप्यनीशः सुखदुःखहेतोः ।।
--श्वेताश्वतरोपनिषद्, १।२ । १. गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ), गाथा ८७९ । २. शास्त्रवार्तासमुच्चय, २।१६५ । ३. किञ्च कालादते नैव मुद्गपक्तिरपीक्ष्यते ।
स्थाल्यादिसंनिधानेऽपि ततः कालादसौ मता।-शास्त्रवार्तासमुच्चय, २।५५ । ४. वही, २११६८। ५. अथर्ववेद, कालसूक्त, १९।५३-५४, डा० मोहनलाल मेहता : जैन धर्म और ___ दर्शन : पृ० ४१७ पर उद्धृत । ६. महाभारत, शान्तिपर्व, २५,२८,३२ आदि । ७. को करइ कंटयाणं तिक्खत्तं मियविहंगमादीणं ।
विविहत्तं तु सहाओ इदि संवपि य सहाओत्ति ॥ -गोम्मटसार (कर्मकाण्ड)
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