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आत्म-स्वरूप-विमर्श : १६९
गति की अपेक्षा से आत्मा के भेद :
गति नामकर्म के उदय से मृत्यु के बाद एक भव को छोड़कर दूसरे भव या पर्याय को प्राप्त करना गति है।' गतियाँ चार होती हैं-देव, मनुष्य, तिर्यश्च और नरक । इन गतियों की अपेक्षा से आत्मा के चार भेद होते हैं ।
(क) देव आत्मा : देवगति के नामकर्म के कारण देव गति में उत्पन्न होने वाले आत्मा को देव कहते हैं । देव अणिमादि ऋद्धियों से युक्त तथा देदीप्यमान होते हैं।
देव-आत्मा के भेद : जैनागमों में देवों को चार समूहों में विभाजित किया गया है, जिसे निकाय कहते हैं । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकये निकायों के नाम हैं ।३ इनका विस्तृत विवेचन तत्त्वार्थसूत्र के चौथे अध्याय और उसकी टीकाओं में किया गया है ।
(ख) मनुष्य पंचेन्द्रिय आत्मा : मनुष्यगति नामकर्म के उदय से मनुष्य पर्याय में उत्पन्न होने वाला आत्मा मनुष्य कहलाता है।"
(ग) तिर्यञ्च आत्मा : आचार्य पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि में तिर्यञ्चगति नामकर्म के उदय से तिर्यञ्च पर्याय में उत्पन्न होने वाले को तिर्यञ्च कहा है। तिर्यश्च के निम्नांकित भेद हैं :
१. एकेन्द्रिय सूक्ष्म २. एकेन्द्रिय बादर ३. द्वीन्द्रिय ४. त्रीन्द्रिय ५. चतुरिन्द्रिय ६. असंज्ञी पंचेन्द्रिय
७. संज्ञी पंचेन्द्रिय इनके विस्तार से चौदह भेद होते हैं।
१. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गा० १४६ ।। २. (क) सर्वार्थसिद्धि, ४१; धवला, १११।१।२४ पु० १, खं० १॥ ३. तत्त्वार्थसूत्र, ४।१। ४. (क) सर्वार्थसिद्धि, चतुर्थ अध्याय । (ख) तत्त्वार्थवार्तिक, चतुर्थ अध्याय । ५. धवला, १११।१।२४ । ६. सर्वार्थसिद्धि, ३।३९ । ७. नियमसार, १।१७ । गोम्मटसार (जीवकाण्ड) में तिर्यञ्चों के ८५ भेदों का
उल्लेख है।
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