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________________ १६६ : जैनदर्शन में आत्म-विचार वट्टकेर के मूलाचार और वीरसेन की धवला में पृथ्वीकायिक जीव के विस्तृत भेद बतलाये गये हैं । ' २. जलकायिक एकेन्द्रिय जीव : जलकाय स्थावर नामकर्म के उदय से जलकाय वाले जीव जलकायिक एकेन्द्रिय जीव कहलाते हैं । इनका आकार जल की बिन्दु की तरह होता है । ओस, हिमग, महिग ( कुहरा ) हरिद, अणु ( ओला ), शुद्ध जल, ( शुद्धोदक) और घनोदक की अपेक्षा जलकायिक जीव आठ प्रकार के बतलाये गये हैं । २ ३. अग्निकायिक एकेन्द्रिय जीध : अग्निकाय स्थावर नाम-कर्म के उदय से जिन जीवों की अग्निकाय में उत्पत्ति होती है, वे अग्निकायिक एकेन्द्रिय जीव कहलाते हैं । सूई की नोक की तरह इनका शरीर होता है । ३ मूलाचार में ४ अग्निकायिक जीवों के निम्नांकित भेद बतलाये हैं- अंगार, ज्वाला, अच, मुर्मर, शुद्ध अग्नि (विद्युत् एवं सूर्यकान्त मणि आदि से उत्पन्न अग्नि) और सामान्य अग्नि । उत्तराध्ययनसूत्र एवं प्रज्ञापना आदि में भी अग्निकायिक जीव के उपयुक्त भेद किये गये हैं ।" ४. वायुकायिक एकेन्द्रिय जीव वायुकाय स्थावर नामकर्म के उदय से वायुकाययुक्त जीव वायुकायिक एकेन्द्रिय जीव कहलाते हैं । वायुकायिक जीव के भेद मूलाचारादि में इस प्रकार कहे गये हैं- सामान्य वायु, उद्भ्राम ( घूमता हुआ ऊपर जाने वाला), उत्कलि, मण्डिलि, गुंजावात, महावात, घनवात, तनुवात | उदय से वनस्पति ५. वनस्पतिकायिक जीव : वनस्पति स्थावर नामकर्म के काययुक्त जीव वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीव कहलाते हैं । के होते हैं - ( १ ) प्रत्येक शरीरी और (२) साधारण शरीरी ।' वीरसेनाचार्य ने ये जीव दो प्रकार १. उत्तराध्ययन सूत्र, ३६।७३-७६ । प्रज्ञापना, ११८; मूलाचार, २०६ - २०९ । धवला, १।१।१।४२ । २. (क) मूलाचार, ५। १४ । (ख) जीवाजीवाभिगमसूत्र, १।१६ । ३. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ), गा० २०१ | ४. मूलाचार, ५।१५ । ५. (क) उत्तराध्ययन सूत्र, ३६।११० १११ । ( ख ) प्रज्ञापना, १ । २३ ॥ ६. (क) मूलाचार, ५ । १६ । (ख) उत्तराध्ययन सूत्र, ३६।११९ - १२० । (ग) प्रज्ञापना, १।२६ । (च) धवला, १।१।१।४२ । ७. गोम्मटसर ( जीवकाण्ड), गा० १८५ । ८. षट्खण्डागम, १।१।१।४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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