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________________ आत्म-स्वरूप-विमर्श : १६५ जिन आत्माओं के मन होता है, उन्हें संज्ञी आत्मा और जिनके मन नहीं होता है, उन्हें असंज्ञी आत्मा कहते हैं ।" संज्ञी आत्मा शिक्षा, क्रिया, उपदेश आदि का ग्रहण तथा कर्तव्य - अकर्तव्य का विचार कर सकते हैं और निर्णय कर सकते हैं । लेकिन असंजी आत्मा में इस प्रकार की शक्ति नहीं होती है । नारकी, मनुष्य और देव गति वाले जीव संज्ञी ही होते हैं । इसी प्रकार एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रियपर्यन्त तियंच गति वाले जीव असंज्ञी ही होते हैं । लेकिन पंचेन्द्रिय में तिर्यञ्चों में कुछ संज्ञी और कुछ असंज्ञी होते हैं । इन्द्रियों को अपेक्षा से संसारी आत्मा के भेद : आत्मा का लिंग इन्द्रिय है । जैन दर्शन में स्पर्शनादि पाँच इन्द्रियाँ मानी गयी हैं । अतः इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी आत्मा के पाँच भेद हैं : एकेन्द्रिय आत्मा : जिनके एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है, उसे एकेन्द्रिय जीव ( आत्मा ) कहते हैं । एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के होते हैं— पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति । उपर्युक्त पाँचों प्रकार के एकेन्द्रिय जीव बादर और सूक्ष्म की अपेक्षा से दो-दो प्रकार के होते हैं । बादर नामकर्म के उदय से बादर (स्थूल) शरीर जिनके होता है, वे बादरकायिक जीव कहलाते हैं । बादरकायिक जीव दूसरे मूर्त पदार्थों को रोकता भी है और उनसे स्वयं रुकता भी है ।" जिन जीवों के सूक्ष्म नामकर्म का उदय होने पर सूक्ष्म शरीर होता है, वे सूक्ष्मकायिक जीव कहलाते हैं । सूक्ष्मकायिक जीव न किसी से रुकते हैं और न किसी को रोकते हैं, वे सम्पूर्ण लोक में व्याप्त रहते हैं । १. पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव वे कहलाते हैं, जो पृथ्वीकाय नामक नामकर्म के उदय से पृथ्वीकाय में उत्पन्न होते हैं । इन जीवों के शरीर का आकार मसूर के समान होता है । उत्तराध्ययन सूत्र, प्रज्ञापना, १. सम्यक् जानातीति संज्ञं मनः तदस्यास्तीति संज्ञी । - धवला, १११ । १ । ३५ । २. (क) सर्वार्थसिद्धि, २२४ ॥ (ख) शिक्षा क्रियाकलापग्राही संज्ञी | तत्त्वार्थ वार्तिक, ९।७।११ । ३. द्रव्यसंग्रह टीका, गा० १२ । ४. वनस्पत्यन्तानामेकम्, तत्त्वार्थ सूत्र, २।२२ । ५. धवला, १।१।१।४५ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक, २।१३, पृ० १२७ । ७. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ), २०१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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