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________________ आत्म-स्वरूप-विमर्श : १५७ और मन से वस्तु को सामान्य रूप से देखने वाला अचक्षुदर्शनी-आत्मा है। इन्द्रियों की सहायता के बिना परमाणु से महान् स्कंध तक समस्त मूर्त द्रव्यों को प्रत्यक्ष देखने वाला अवधिदर्शनी-आत्मा कहलाता है। समस्त लोक और अलोक का सामान्यतः अवबोध करने वाला केवलदर्शनी-आत्मा कहलाता है।' दर्शन मार्गणा में गुणस्थानों का स्वामित्व : षट्खण्डागम में कहा है कि चक्षुदर्शनी जीव चतुरिन्द्रिय से ले कर क्षीण कषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान तक होते हैं । अचक्षुदर्शनी जीव एकेन्द्रिय प्रभृति क्षीण कषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान पर्यन्त होते हैं । अवधिदर्शनी जीव असंयत सम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान पर्यन्त होते हैं। केवलदर्शनी जीव सयोगि केवली, अयोगि केवली और सिद्ध इन तीन स्थानों में होते हैं । २ दर्शन-मार्गणा की जीव संख्या के प्रमाण का विवेचन गोम्मटसार (जीवकाण्ड) आदि में किया गया है । लेश्या मार्गणा : आत्मा और कर्म का सम्बन्ध जिसके कारण होता है, वह शुभ-अशुभ मानसिक परिणाम लेश्या कहलाता है। गोम्मटसार (जीकाण्ड) में आचार्य नेमिचन्द्र ने कहा है कि जिसके द्वारा आत्मा अपने को पुण्य-पाप से लिप्त करता है, उसे लेश्या कहते हैं।" आचार्य पूज्यपाद ने लेश्या के दो भेद किये है-द्रव्यलेश्या और भावलेश्या ।६।। द्रव्यलेश्या : शरीर की प्रभा को परमागम में द्रव्यलेश्या कहा गया है। इसका कारण वर्ण नामकर्म का उदय होना है। इसके छह भेद होते हैं, जिनका निर्देश आगम में कृष्णादि छह रंगों द्वारा किया गया है। कृष्णलेश्या भौंरे के रंग के समान, नीललेश्या नीलमणि के रंग के समान, कापोतलेश्या कबूतर के रंग के समान, पीतलेश्या सुवर्ण के समान, पद्मलेश्या कमल वर्ण के समान और शुक्ललेश्या कांस के फूल के समान श्वेत वर्ण वाली होती है। यह द्रव्यलेश्या आयुपर्यन्त तक एकसी रहती है । १. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), ४८४-८६ । २. षट्खण्डागम, ११११११३२-३५ । ३. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), ४८७-८८ । ४. जोवकम्माणं संसिलेसयणयरी, मिच्छत्तासंजमकसायजोगा त्ति भणिदं होदि । धवला, ८।३।२७६ । ५. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), ४८९ । ६. सर्वार्थसिद्धि, २।६। ७. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), ४९४-९५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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