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आत्म-स्वरूप-विमर्श : १५५
सिर्फ वर्तमान में चिन्तित मनोगत पदार्थ को जानता है, किन्तु विपुलमतिज्ञान त्रिकालसम्बन्धी चिन्तित पदार्थ को जानता है।'
(५) केवलज्ञान
केवलज्ञान क्षायिकज्ञान है। इस की पुष्टि उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र के दसवें अध्याय के पहले सूत्र से होती है । धवला में केवलज्ञान को असहाय ज्ञान कहा गया है क्योंकि यह इन्द्रिय और प्रकाश की अपेक्षा नहीं करता है ।। यह ज्ञान सकल प्रत्यक्ष कहलाता है । उमास्वामी ने केवलज्ञान का विषय समस्त द्रव्य और उनकी समस्त पर्यायों को बताया है । जैन परम्परा में केवलज्ञान का अर्थ सर्वज्ञता है । केवलज्ञान अतीन्द्रिय ज्ञान भी कहलाता है।
उपर्युक्त पाँच ज्ञानों में से मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान मिथ्या भी होते हैं, इन्हें क्रमशः कुमति, कुश्रुत और विभंग ज्ञान कहते हैं । षट्खण्डागम में ज्ञानमार्गणा की अपेक्षा आठ प्रकार के जीव बतलाये गये हैं। -१. मति-अज्ञानी २. श्रुतअज्ञानी, ३. विभंग-ज्ञानी, ४. आभिनिबोधिक-ज्ञानी, ५. श्रुतज्ञानी, ६. अवधिज्ञानी, ७. मनःपर्ययज्ञानी और ८. केवलज्ञानी । ज्ञान मार्गणा के संक्षिप्त विवेचन से स्पष्ट है कि जैन दार्शनिकों ने ज्ञानवाद का जितना सूक्ष्म, स्पष्ट और तार्किक विवेचन किया है, उतना अन्य किसी सम्प्रदाय के दार्शनिकों ने नहीं किया है। __ संयम मार्गणा : विधिपूर्वक अतिचार-रहित व्रतादि का पालन करना संयम है। आचार्य नेमिचन्द्र ने कहा भी है-'अहिंसादि पांच महाव्रतों और ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप और उत्सर्ग इन पाँच समितियों का पालन करना, क्रोधाग्नि कषायों का निग्रह, मन, वचन और काययोग का त्याग और स्पर्शनादि इन्द्रियों को जीतना संयम है।
१. तत्त्वार्थवार्तिक, ११२३।७ । २. मोहक्षयात् ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् । तत्त्वार्थसूत्र, १०।१ । ३. धवला, १३।५।५।२१ । ४. सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ।-तत्त्वार्थसूत्र, ११२९ । ५. मतिश्रुताऽवधयो विपर्ययश्च । -वही, १।३१ । ६. षट्खण्डागम, ११११११११५ । ७. सम्यक् प्रकारेण यमनं संयमः ।-गोम्मटसार (जीवकाण्ड), टीका, गाथा
८. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गाथा ४६५ ।
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