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आत्म-स्वरूप-विमर्श : १४५
होती हैं । अनिवृत्तकरण नामक गुणस्थान में मैथुन और परिग्रह संज्ञा होती है। दसवें सूक्ष्मसंपराय नामक गुणस्थानवी जीवों में परिग्रह संज्ञा ही होती है, शेष नहीं। इसके ऊपर वाले उपशान्त आदि गुणस्थानों में कोई संज्ञा नहीं होती है। ___ आहारादि चारों संज्ञाओं का स्वरूप जानकर उनके प्रति तृष्णा को घटाना ही संसारी जीवों के लिए श्रेयस्कर है।
मार्गणा : जीवों के सम्बन्ध में जैन शास्त्रकारों ने मार्गणाओं का भी प्रतिपादन किया है । जीव विवेचन में मार्गणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अतः यहाँ इनका विवेचन करना लाभप्रद होगा।
स्वरूप : षखंडागम तथा उसकी टीका धवला के अनुसार मार्गणा, गवेषणा, अन्वेषण, ईहा, ऊह, अपोह और मीमांसा पर्यायवाची शब्द हैं ।२ चौदह जीव समास जिसमें या जिसके द्वारा खोजे जाते हैं, उसे मार्गणा कहते हैं ।
मार्गणा के चौदह भेद : नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने मार्गणा के चौदह भेद निम्नांकित बतलाये हैं- (१) गति, (२) इन्द्रिय, (३काय, (४) योग, (५) वेद, (६) कषाय, (७) ज्ञान, (८) संयम, (९) दर्शन, (१०) लेश्या, (११) भव्य, (१२) सम्यक्त्व, (१३) संज्ञो और (१४) आहार ।" ____ गति मार्गणा : गति नामकर्म नामक एक नामकर्म का भेद है । उसके कारण भवान्तर में आत्मा के जाने को पूज्यपाद ने गति कहा है।षट्खण्डागम में आचार्य पुष्पदन्त और भूत बली ने गतिमार्गणा के नरक गति, तिर्यञ्च गति, मनुष्य गति और सिद्ध गति भेद किये हैं। इनका विवेचन आगे किया जाएगा। सिद्धगति में नामकर्म का अभाव होता है, इसलिए उसे अगति कहते हैं। सिद्ध गति असंक्रांति रूप है। १. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ), जीवतत्त्वप्रदीपिका, ७०२। २. (क) षट्खण्डागम, १३।५।५।३८ । (ख) धवला, १।१।१।२ । ३. (क) यकाभिः यासु वः जीवाः मृग्येत सा मार्गणाः -गोम्मटसार (जीव
काण्ड ) जीवतत्त्वप्रदीपिका, २।। (ख) गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ), १४१ । ४. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ) १४२ । ५. यदुदयादात्मा भवान्तरं गच्छति सा गतिः-सर्वार्थसिद्धि, ८।११। ६. षट्खण्डागम, १।१।१, २४ । ७. गदिकम्मोदयाभावा सिद्धगदी अगदी । अथवा""असंक्रान्तिः सिद्धगतिः ।
धवला, ७।२।१, २ ।
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