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१४४ : जैनदर्शन में आत्म- विचार
संज्ञा - प्ररूपणा : संज्ञा प्ररूपणा के अन्तर्गत चार संज्ञाओं का विवेचन प्राप्त होता है जिनसे प्रत्येक संसारी पीड़ित है और जो सभी के अनुभवगम्य है ।" वे चार संज्ञाएं आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह हैं ।२ संज्ञा के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण स्व-स्व कर्म की उदीरणा होना है । गोम्मटसार ( जीवकाण्ड) ₹ में इनका स्वरूप विवेचन निम्नांकित है
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१. आहार संज्ञा : आहार संज्ञा असातावेदनीय कर्म को उदीरणा होने पर उत्पन्न होती है । इसको उत्तेजित करने वाले कारण - आहार को देखना, उसके उपयोग (पूर्व अनुभूत आहार का स्मरण करने) में मति रखना, पेट का खाली होना है । गौण कारण हैं ।
२. भय संज्ञा : भय कर्म की उदीरणा होना भय संज्ञा का मूल कारण है । भयंकर पदार्थ देखना, अनुभूत भयंकर पदार्थ का स्मरण करना, हीन शक्ति का होना ये भय संज्ञा को उत्तेजित करने वाले कारण हैं ।
३. मैथुन संज्ञा : वेद कर्म की उदीरणा होना मैथुन संज्ञा का कारण है । इसके अतिरिक्त तीन कारणों से मैथुन संज्ञा उत्तेजित होती है- स्वादिष्ट और गरिष्ठ युक्त भोजन करना, भोगे गये विषयों का स्मरण करना एवं कुशील का सेवन करना ।
४. परिग्रह संज्ञा : लोभ कर्म की उदीरणा इसका प्रमुख कारण है । भोगोपभोग के कारणभूत उपकरणों को देखना, पहले अनुभूत पदार्थों को स्मरण करना तथा उनमें मूर्च्छाभाव रखना - ये तीन परिग्रह संज्ञा को उत्तेजित करने वाले गौण कारण हैं ।
गुणस्थानों की अपेक्षा संज्ञा प्ररूपणा का विवेचन :
किस गुण-स्थान में कितनी और कौन-कौन संज्ञाएँ होती हैं, इसका आगम में सूक्ष्म विवेचन किया गया है। प्रथम गुण-स्थान ( मिथ्यात्व ) से प्रमत्तविरत नामक छठे गुणस्थान तक जीवों के आहारादि चारों संज्ञाएं होती हैं । अप्रमत्तविरत और अपूर्वकरण गुणस्थान में आहार संज्ञा के अलावा शेष तीन संज्ञाएँ
१. ( क ) इह जाहि वाहिया वि य, जीवा पावंति दारुणं दुक्खं ।
सेवंता वि य उभये, ताओ चत्तारि सण्णाओ ॥ - - गोम्मटसार ( जीव काण्ड), गा० १३४ ।
(ख) आहारादि विषयाभिलाषः संज्ञेति । - सर्वार्थसिद्धि, २१२४ | २. धवला, २।१।१ ।
३. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड), १३५ -१३८ ।
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