________________
आत्म-स्वरूप-विमर्श : १३९
की बतलाई गयी है। इस जीव को यह अवगाहना उत्पत्ति के तीसरे समय में ही इसलिए होती है कि तीसरे समय में सूक्ष्म निगोदिया लब्धक जीव गोलाकार होता है। शेष प्रथम और द्वितीय समय में यह जीव क्रमशः आयताकार और वर्गाकार होता है। इसलिए इन समयों में जघन्य अवगाहना नहीं होती है । उत्कृष्ट अवगाहना महामत्स्य की होती है। यह मत्स्य स्वयम्भूरमण समुद्र के मध्य में रहता है । इसका प्रमाण एक हजार योजन लम्बा, पाँच सौ योजन चौड़ा और ढाई सौ योजन मोटा होता है । यह सर्वोत्कृष्ट अवगाहना धन क्षेत्रफल की अपेक्षा से है।
इन्द्रियों की अपेक्षा से जघन्य अवगाहना : गोम्मटसार (जीवकाण्ड) में आचार्य नेमिचन्द्र के अनुसार द्वीन्द्रियों में जघन्य अवगाहना अनुंधरीजीव की घनांगुल के संख्यातवें भाग, त्रीन्द्रिय जीवों में कुथु की जघन्य अवगाहना अनुंधरी से संख्यात गुणी, इससे संख्यात गुणी चतुरिन्द्रिय जीवों में काणमक्षिका की और इससे संख्यात गुणी पंचेन्द्रियों में सिक्थमत्स्य की जघन्य अवगाहना होती है ।
इन्द्रियों को अपेक्षा से उत्कृष्ट अवगाहना : एकेन्द्रिय जीवों में सबसे उत्कृष्ट कमल के शरीर की अवगाहना (लम्बाई की अपेक्षा) कुछ अधिक एक हजार योजन, द्वीन्द्रियों में शंख की बारह योजन, त्रीन्द्रिय जीवों में चींटी की तीन कोस, चतुरिन्द्रिय जीवों में भ्रमर की एक योजन और पंचेन्द्रिय जीवों में महामत्स्य की एक हजार योजन उत्कृष्ट अवगाहना होती है ।
कुलों की अपेक्षा जीवसमास का वर्णन : शरीर के भेद के कारणभूत नो कर्म वर्गणा के भेद को कुल कहते हैं। विभिन्न जीवों के कुलों की संख्या मूलाचार, गोम्मटसार जीवकांड आदि में निम्नांकित प्रतिपादित की गयी है
१. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) ९५ । २. (क) गोम्मटसार, (जीवकाण्ड), जीवतत्त्वप्रदीपिका, ९५ ।
(ख) घवला, ११।४।२।२० । ३. गोम्मटसार, (जीवकाण्ड), हिन्दो टोका, ९५-९६ । ४. वही, ९६ संस्कृत एवं हिन्दी टीका । ५, गोम्मटसार (जीवकाण्ड), ९७ । ६. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) हिन्दी भावार्थ, ११४ । ७. मूलाचार, २२१-२२५ । ८. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), ११५-११७ । ९. तत्त्वार्थसार, २।११२-११६ ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org