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स्वभाव एवं शक्ति की अपेक्षा कर्म के आठ भेद (१९९); ज्ञानावरण कर्म ज्ञान का विनाशक नहीं है, ज्ञानावरण कर्म की प्रकृतियाँ (२००); दर्शनावरण कर्म, दर्शनावरण कर्म के भेद (२०१); वेदनीय कर्म (२०३); साता-असाता वेदनीय कर्म-आस्रव के कारण (२०३); मोहनीय कर्म (२०४); आयु कर्म (२०६); नाम कर्म (२०७); संहनन के भेद (२०९); गोत्र कर्म (२१२); अन्तराय कर्म, घाती-अघाती की अपेक्षा से कर्म के भेद, घाती कर्म के भेद (२१३); शुभ-अशुभ की अपेक्षा से कर्म के भेद (२१४); कर्म विपाक-प्रक्रिया और ईश्वर (२१५); कर्मों का कोई फलदाता नहीं है (२१७); कर्म और पुनर्जन्म-प्रक्रिया, पुनर्जन्म का अर्थ एवं स्वरूप (२१९); पुनर्जन्म-विचार पर आक्षेप और परिहार (२२०); पुनर्जन्म
प्रक्रिया (२२३); पुनर्जन्म-साधक प्रमाण (२३०) चौथा अध्याय : बन्ध और मोक्ष :
२३४-२८३ बन्ध की अवधारणा और उसकी मीमांसा, बन्ध का स्वरूप, बन्ध के भेद (२३४); बन्ध के कारण (२३९); जैनेतर दर्शन में बन्ध के कारण, जैन दर्शन में कर्म-बन्ध के कारण (२३९); बन्ध-उच्छेद (२४२); गुणस्थान : जैन दर्शन की अपूर्व देन, गुणस्थान का स्वरूप (२५२); अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण में भेद (२६१); मोक्षस्वरूप और उसका विश्लेषण (२६६); मुक्तात्मा का आकार (२६८); मुक्त जीव के ऊर्ध्वगमन का कारण (२६९); जैनेतर भारतीय दार्शनिक परम्परा में मान्य मोक्ष-स्वरूप की मीमांसा (२७३); बुद्धधादिक नो विशेष गुणों का उच्छेद होना मोक्ष नहीं (२७४); शुद्ध चैतन्यमात्र में आत्मा का अवस्थान होना मोक्ष नहीं (२७७); मोक्ष आनन्दैक स्वभाव को अभिव्यक्ति-स्वरूप मात्र नहीं
(२८०); मोक्ष के हेतु (२८३) उपसंहार:
२८७-२९०
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