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१३० : जैनदर्शन में आत्म-विचार
न्याय-वैशेषिक दर्शन का दृष्टिकोण : न्याय-वैशेषिक दर्शन में ईश्वर का ज्ञान नित्य माना गया है। इसलिए इस दर्शन में ईश्वर नित्य सर्वज्ञ है।' इसके अतिरिक्त जिन योगी आत्माओं ने योग के द्वारा वैसा सामर्थ्य प्राप्त कर लिया है उन आत्माओं में भी योगज सर्वज्ञता का होना न्याय-वैशेषिक दार्शनिक मानते हैं। लेकिन न्याय-वैशेषिक दार्शनिक जैन दार्शनिकों की तरह यह नहीं मानते हैं कि सर्वज्ञ होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। योगियों का ज्ञान अनित्य होता है इसलिए मोक्ष-प्राप्ति के बाद उनका सर्वज्ञत्व नष्ट हो जाता है। न्याय-वैशेषिक ईश्वर को सर्वज्ञ मान कर वेदों को ईश्वरकृत मानता है। अतः मीमांसकों की तरह इस दर्शन में भी धर्म के विषय में वेद को ही प्रमाण स्वीकार किया गया है।
सांख्य-योग दर्शन और सर्वज्ञता : सांख्य-योग दर्शन में सर्वज्ञता की सम्भावना न्याय-वैशेषिक दर्शन की तरह है। सांख्य-योग दार्शनिक भी न्याय-वैशेषिक की तरह योगज सर्वज्ञता को अणिमादि ऋद्धियों की भाँति योग विभूति मात्र मानता है, जो किसी-किसी साधक को प्राप्त हो सकती है । सांख्य दार्शनिक ज्ञान को पुरुष का गुण न मान कर बुद्धि का गुण मानते हैं । बुद्धि प्रकृतिजन्य महान् का परिणाम है। अतः इस मत के अनुसार प्रकृति ही सर्वज्ञ है । कैवल्य की प्राप्ति हो जाने पर यह सर्वज्ञता नष्ट हो जाती है। योग-दर्शन पुरुष-विशेष रूप ईश्वर को नित्य सर्वज्ञ मानता है। जैसा कि न्याय-वैशेषिक मानते हैं । योगज सर्वज्ञता विषय-वासना तारक विवेक ज्ञानरूप है,५ यह अनित्य होने के कारण अपवर्ग के पश्चात् विनष्ट हो जाती है। सांख्य-योग दार्शनिक न्याय-वैशेषिक दार्शनिकों से इस बात में भी सहमत हैं कि बौद्धिक या योगज सर्वज्ञता मोक्ष प्राप्ति के लिए अनिवार्य शर्त नहीं है अर्थात् बिना सर्वज्ञता के भी कैवल्य की प्राप्ति हो सकती है।
१. तर्कसंग्रह : अन्नम् भट्ट । २. वैशेषिकसूत्र, ९।११११-१३ एवं प्रशस्तपाद भाष्य । ३. द्रष्टव्य-न्यायभाष्य, अध्याय ५ । ४. क्लेशकर्मविपाकाशयरपरामृष्ट: पुरुषविशेष ईश्वरः ।
-योगसूत्र, ११२४ । ५. तारकं सर्वविषयं सर्वथा विषयमक्रमं चेति विवेकजं ज्ञानम् । -योगसूत्र,
३.५४ 1 ६. सत्त्वपुरुषयोः शुद्धिसाम्ये कैवल्यमिति ।
-योगसूत्र, ३।५५ ।
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