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आत्म-स्वरूप-विमर्श : १२५
शक्ति का घात न करना) क्षय कहलाता है ।" जिस प्रकार फिटकरी के डालने से उपशान्त जल को किसी साफ बर्तन में निकाल लेने पर उस जल की गन्दगी पूर्णतया नष्ट हो जाती है उसी प्रकार आत्मा से अष्ट कर्मों की अत्यन्त निवृत्ति होना या उसका उनसे सर्वथा दूर होना क्षय कहलाता है । आत्मा का कर्मों के क्षय से जो भाव होता है वह क्षायिक भाव कहलाता है । तत्त्वार्थसूत्र में क्षायिक भाव के नौ भेद कहे गये हैं : क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिका भोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र । क्षायिक भाव मोक्ष का कारण है । मुक्तात्मा में उपर्युक्त नौ भावों में से केवल क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक वीर्य और सिद्धत्व के अलावा शेष समस्त कर्मों का अभाव होता है । *
क्षायोपशमिक भाव : क्षायोपशमिक भाव को मिश्रभाव भी कहते हैं । क्योंकि यह भाव कर्मों के अंश रूप क्षय से तथा अंश रूप उपशम से उत्पन्न होता है । न तो कर्मों का सर्वथा क्षय होता है और न सर्वथा उपशम ।" भट्ट अकलंकदेव ने क्षायोपशमिक भाव को स्पष्ट रूप से समझाते हुए कहा है कि जिस प्रकार कोदो के धोने से उनमें से कुछ कोदों की मादकता नष्ट हो कुछ की अक्षीण रहती है, उसी प्रकार कर्मों के क्षय करने वाले से ( परिणामों की निर्मलता से ) कर्मों के एकदेश का क्षय और एकदेश का उपशम होना क्षायोपशमिक कहलाता है और कर्मों के क्षायोपशमिक से होने वाले आत्मा के भाव को क्षायोपशमिक भाव कहते हैं ।
जाती है और
कारणों के होने
विभिन्न कर्मों के क्षयोपशम होने पर आत्मा के जो भाव प्रकट होते हैं उनको उमास्वामी ने अट्ठारह भागों में विभाजित किया है : मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, मन:पर्याय ज्ञान, कुमति, कुश्रुत और कुअवधि ये तीन अज्ञान, चक्षु दर्शन, अचक्षु
१. ( क ) गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ) प्र०, टीका, गा० ८, पृ० २९ । ( ख ) धवला १1१।१।२७ ।
२. ( क ) सर्वार्थसिद्धि २ ।१ ।
( ख )
खीणम्मि खइयभावो दु । - गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ) गा० ८१४ । ३. तत्त्वार्थ सूत्र, २।४ । विस्तृत विवेचन के लिए द्रष्टव्य सर्वार्थसिद्धि आदि
टीकाएँ ।
४. तत्त्वार्थसूत्र, १०।४ ।
५. तत्क्षयादुपशमाच्चोत्पन्नो गुणः क्षायोपशमिक: । -धवला, ११११११८ |
६. तत्त्वार्थवार्तिक, २।११३ ।
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