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________________ आत्म-स्वरूप-विमर्श : १०७ पर घट में क्रिया नहीं होती है उसी प्रकार निष्क्रिय आत्मा का संयोग और प्रयत्न से शरीरादि में क्रिया नहीं हो सकती है ।" दूसरी बात यह है कि न्याय-वैशेषिक मत में गुण और कर्म निष्क्रिय माने गये हैं । अतः संयोग और गुण के निष्क्रिय होने के कारण इनके सम्बन्ध से शरीरादि में क्रिया उसी प्रकार नहीं हो सकती जिस प्रकार दो जन्मान्धों के मिलने से दर्शन - शक्ति नहीं उत्पन्न हो सकती हैं। तीसरी बात यह है कि धर्म, अधर्म पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं इसलिए उन्हें आत्मा के गुण मानना ठीक नहीं है । ४ निष्क्रिय आत्मवादी वैशेषिकों का कहना है कि जिस प्रकार अग्नि संयोग उष्ण गुण की अपेक्षा से घटादि में पाकज रूपादि उत्पन्न करता है स्वयं अग्नि में नहीं, इसी प्रकार अदृष्ट की अपेक्षा से आत्मा संयोग और प्रयत्न शरीरादि में क्रिया उत्पन्न कर देंगे । अतः आत्मा को सक्रिय मानना व्यर्थ है । जैन दार्शनिक प्रत्युत्तर में कहते हैं कि अग्नि उष्ण स्वभाव वाली है इसलिए घटादि में पाकादि क्रिया हो जाती है । इसी प्रकार क्रिया परिणामी द्रव्य आत्मसंयोग और प्रयत्न हाथ आदि में क्रिया कर सकता है । जिस प्रकार से अनुष्ण, अप्रेरक, अनुपघाती और अप्राप्त संयोग रूपादि की उत्पत्ति नहीं कर सकता उसी प्रकार निष्क्रिय द्रव्य किसी दूसरे निष्क्रिय द्रव्य में नहीं उत्पन्न कर सकेगा । ५ संयोग से क्रिया वैशेषिकों का यह कथन कि संसारी आत्मा की तरह मुक्तात्मा भी सक्रिय हो जायगी, ठीक नहीं है । क्योंकि यह पहले लिखा जा चुका है कि आत्मा में दो प्रकार की स्वाभाविक और वैभाविक क्रियाएँ होती हैं । संसारी आत्मा में दोनों प्रकार की क्रियाएं होती हैं और कर्म-विमुक्त जीव के वैभाविक क्रिया का विनाश हो जाता है किन्तु स्वाभाविक क्रिया उनमें होती है । अनन्त ज्ञानादि परिणमन रूप क्रिया मुक्तात्मा में सदैव होती रहती है । अतः सिद्ध है कि मुक्तात्मा संसारी आत्मा की तरह सक्रिय न होने पर भी निष्क्रिय नहीं है । १. तत्त्वार्थवार्तिक, ५१७७८ । २ वैशेषिक सूत्र ५।२।२१-२२ । ३. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५।७। ४. वही । ५. तत्त्वार्थवार्तिक, ५।७।९-१३ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक ५।७१९-१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002140
Book TitleJain Dharma me Atmavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1984
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, & Spiritual
File Size13 MB
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