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________________ ५५२ न धर्म-दर्शन कारतूस, धनुष के साथ तीर संयुक्त कर रखना । आवश्यकता से अधिक उपभोग एवं परिभोग की सामग्री संग्रह करना उपभोगपरिभोगातिरिक्त है । ये सब अतिचार निरर्थक हिंसा का पोषण करने वाले हैं अतः श्रमणोपासक को इनसे बचना चाहिए। शिक्षावत : शिक्षा का अर्थ है अभ्यास । जिस प्रकार विद्यार्थी पुनः पुनः विद्या का अभ्यास करता है उसी प्रकार श्रावक को कुछ व्रतों का पुन:-पुनः अभ्यास करना पड़ता है। इसी अभ्यास के कारण इन व्रतों को शिक्षाव्रत कहा गया है । अणुव्रत एवं गुणव्रत एक ही बार ग्रहण किये जाते हैं जबकि शिक्षाव्रत बार-बार ग्रहण किये जाते हैं । दूसरे शब्दों में, अणुव्रत एवं गुणवत जीवनभर के लिए होते हैं जबकि शिक्षाव्रत अमुक समय के लिए ही होते हैं । शिक्षाव्रत चार हैं : १ सामायिक व्रत, २. देशावकाशिक व्रत, ३ पौषधोपवास व्रत, ४. अतिथिसंविभाग व्रत । १. सामायिक-'सामायिक पद के मूल में 'समाय' शब्द है। समाय शब्द 'सम' और 'आय' के संयोग से बनता है। सम का अर्थ है समता अथवा समभाव और आय का अर्थ है लाभ अथवा प्राप्ति । इन दोनों अर्थों को मिलाने से समाय का अर्थ होता है समभाव का लाभ अथवा समता की प्राप्ति । समायसम्बन्धी भाव अथवा क्रिया को सामायिक कहते हैं । इस प्रकार सामायिक आत्मा का वह भाव अथवा शरीर की वह क्रियाविशेष है जिससे मनुष्य को समभाव की प्राप्ति होती है । दूसरे शब्दों में. जो त्रस और स्थावर सभी जीवों के प्रति समभाव रखता है वह सामायिक का आराधक होता है। सामायिक के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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