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________________ आचारशास्त्र ध्यान अर्थात् क्रूरतापूर्ण चिन्तन । जिसका मन क्रूर होता है वह रुद्र कहलाता है। रुद्र व्यक्ति का ध्यान रौद्रध्यान है। हिंसा, असत्य, चोरी आदि से सम्बन्धित चिन्तन रौद्रध्यान के अन्तर्गत है क्योंकि उसमें क्रोध, ईर्ष्या, कपट, लोभ, अहंकार आदि क्रूर वृत्तियों की विद्यमानता होती है। आर्तध्यान व रौद्रध्यान का सेवन ही अपध्यानाचरण है। प्रमादाचरण अर्थात् आलस्य का सेवन । शुभ प्रवृत्ति में आलस्य रखना अर्थात् शुभ प्रवृत्ति करना ही नहीं अथवा असावधानीपूर्वक शुभ प्रवृत्ति करना प्रमादाचरण है। इसका विधेयात्मक रूप अशुभ कार्यों में उद्यमशील रहना है । हिंसाप्रदान का अर्थ है किसी को हिंसक साधन-जैसे अस्त्र-शस्त्र, विष आदि देकर हिंसक कृत्यों में सहायक होना । जिस उपदेश से सुनने वाला पापकर्म में प्रवृत्त हो वैसा उपदेश देना पापकर्मोपदेश कहलाता है। जैसे हिंसा से विरत व्यक्ति किसी को हिंसक साधन देकर हिंसक कृत्यों में सहायक नहीं होता उसी प्रकार पापकर्म से' निवृत्त व्यक्ति किसी को पापकर्म का उपदेश देकर पापपूर्ण कृत्यों में सहायक नहीं बनता । इस प्रकार अपध्यानाचरण, प्रमादाचरण, हिंसाप्रदान व पापकर्मोपदेश तथा इसी प्रकार की अन्य निरर्थक पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत्त होना अनर्थदण्डविरमणव्रती के लिए आवश्यक है । अन्य व्रतों की भांति अनर्थदण्ड-विरमण व्रत के भी पाँच प्रधान अतिचार हैं : १. कन्दर्प, २. कौत्कुच्य, ३. मौखर्य, ४. संयुक्ताधिकरण, ५. उपभोगपरिभोगातिरिक्त । विकारवर्धक वचन बोलना या सुनना कन्दर्प है। विस्तारवर्धक चेष्टाएं करना या देखना कौत्कुच्य है। असम्बद्ध . एवं अनावश्यक वचन बोलना मौखर्य है। जिन उपकरणों के संयोग से हिंसा की संभावना बढ़ जाती हो उन्हें संयुक्त कर रखना संयुक्ताधिकरण है । उदाहरण के लिए बन्दूक के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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