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जैन धर्म-दर्शन
सर्वज्ञ है तो सबको उसे सर्वज्ञ मानना ही पड़ेगा। सर्वश के ज्ञान के प्रभाव के सामने किसी का भाग्रह टिक ही नहीं सकता। सर्वज्ञ को यह कहने की या घोषणा करने की आवश्यकता ही नहीं रहती कि में सर्वशजिन-केवली हूँ और अमुक व्यक्ति सर्वज्ञ-जिन-केवली नहीं है। जनसमूह स्वयं समझ लेगा कि कौन सर्वज्ञ है और कोन असर्वज्ञ। प्रस्तुत शतक में महावीर और गोशाल के बीच हुए वाद-विवाद व लड़ाई-झगड़े का जिस विचित्र ढंग से वर्णन किया गया है उसे देखते हुए तो यही कहना पड़ेगा कि न तो महावोर ही जिन अर्थात् वीतराग एवं केवली अर्थात् सर्वज्ञ थे पौर न गोशाल ही जिन एवं केवली था। दोनों अपने-अपने संष में प्रभावशाली एवं पूज्य थे। दोनों एक-दूसरे को अपमानित करने एवं नीचा दिखाने के प्रयत्न में थे। ____ गोशाल ने तो जो कुछ किया सो किया ही, महावीर ने भी गोशाल को क्रोधित करने में कसर न रखी। महावीर खुलेगाम यह घोषित करते थे कि गोशाल जिन नहीं किन्तु जिनप्रलापी है । गोशाल बब भनेकों मनुष्यों से यह बात सुनता तो वह अत्यन्त क्रोधित होता-उसके क्रोष का पार न रहता। एक दिन महावीर के शिष्य मानन्द को चेतावनी देते हुए गोशाल ने कहा कि यदि प्राज महावीर मेरे सम्बन्ध में कुछ भी कहेंगे तो मैं अपने तप-तेज द्वारा उन्हें भस्म कर दूंगा। महावीर भी मानते थे कि गोशाल अपने तप-तेज से किसी को भी भस्म कर सकता था किन्तु अरिहंत-भगवंतों को नहीं जला सकता था। हां, उनमें परिताप अवश्य उत्पन्न कर सकता था। इसीलिए महावीर ने अपने शिष्यों को गोशाल के साथ चर्चा-वार्ता करने की मनाही कर रखी थी। चूकि वह महावीर को जलाकर भस्म नहीं कर सकता था अतः वे उसे खरी-खोटी सुनाते थे।
एक बार गोशाल को अपने व्यक्तित्व को छिपाने की चेष्टा करते हुए। देखकर वीतराग महावीर ने जरा फटकारते हुए कहा कि जिस प्रकार कोई ।
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