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मैन धर्म-दर्शन का साहित्य
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पदार्थों के विषय में तो किसी प्रकार की भविष्यवाणी कर सकता है किन्तु प्ररूपी पदार्थों के विषय में इस प्रकार का कथन जैन ज्ञानवाद की मान्यता से विपरीत है । कर्म युक्त होने पर भी जीव अवधिज्ञान का साक्षात् विषय नहीं हो सकता । अन्यथा केवलज्ञान और प्रवधिज्ञान में अन्तर ही क्या रदेगा ? अवधिज्ञानी तिल के पौधे के बारे में भविष्यवाणी कर सकता है क्योंकि पौधा रूपी है किन्तु तिल के जीव के बारे में वैसा नहीं कर सकता क्योंकि जीव अरूपी है।
गोशाल महावीर से पृथक् होकर अपने को जिन, केवली, सर्वज्ञ कहने लगा। महावीर, जोकि वीतराग एवं सर्वज्ञ हो चुके थे, गोशाल को जिन, केवली, सर्वज्ञ मानने के लिए तैयार न थे। वे कहते थे कि गोशाल अपने को जिन नहीं होते हुए भी जिन, केवली नहीं होते हुए भी केवली, सर्वज्ञ नहीं होते हुए भी सर्वज्ञ घोषित कर रहा है। इसके विपरीत गोशाल महावीर को छमस्थ (प्रसर्वज्ञ) ही समझता था। वह उन्हें सर्वज्ञ मानने के लिए तैयार न था । लोग कहते थे कि दो जिन परस्पर आक्षेप-प्रक्षेप कर रहे हैं। एक कहता है कि मैं सर्वज्ञ हूं और दूसरा कहता है कि मैं सर्वश हैं। इनमें कौन सच्चा और कौन झूठा है ? उनमें जो मुख्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति थे वे कहते-श्रमण भगवान महावीर सत्यवादी हैं और मखलिपुत्र गोशाल मिथ्यावादी है।
इस वर्णन से मालूम होता है कि सर्वज्ञ की उपस्थिति में भी लोग सर्वशता के विषय में सर्वसम्मत निर्णय नहीं कर पाते थे। कोई किसी एक को सर्वज्ञ मानता था तो कोई किसी अन्य को। वस्तुतः सर्वज्ञ कोन है, इसका निर्णय उन सर्वज्ञों के सामने भी नहीं हो पाता था। जब तशकथित सर्वश ही मापस में लड़ते-झगड़ते हों तथा एक-दूसरे पर प्राक्षेप-प्रक्षेप करते हों तो प्रसर्वज्ञ लोग सर्वज्ञता की हंसी नहीं उड़ाएंगे तो क्या करेंगे ? सर्वश होकर लोगों को अपने सर्वज्ञत्व की प्रतीति न करा सके वह सर्वज्ञ कसा ? किसी की कोई भी मान्यता क्यों न हो, यदि कोई वास्तव में
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