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________________ कर्मसिद्धान्त . . मिट्टी से घट ही उत्पन्न होना चाहिए, पट नहीं ? अतएव संसार की सब घटनाओं का कारण स्वभाव ही है।' नियतिवाद-नियतिवादियों की मान्यता है कि जो होना होता है वही होता है अथवा जो होना होता है वह होता ही है। घटनाओं का अवश्यम्भावित्व पूर्वनिर्धारित है । जगत की प्रत्येक घटना पहले से ही नियत अर्थात निश्चित होती है । किसी के इच्छा-स्वानाय का कोई मूल्य नहीं है । वस्तुत: इच्छा. स्वातन्त्र्य नाम की कोई चीज ही नहीं है। मनुष्य केवल अपने अज्ञान के कारण ऐसा सोचता है कि मैं भविष्य को बदल सकता हूं। जो कुछ होना होगा वह होगा ही। अनागत अर्थात् भविष्य भी वैसे ही सुनिश्चित एवं अपरिवर्तनीय है जैसे अतीत अर्थात् भन । अतएव आशा, भय, चिन्ता अदि निरर्थक हैं एवं किसी की प्रशंसा करना अथवा किसी पर दोष लगाना भी व्यर्थ है। बौद्ध आगम दीघनिकाय के सामञफलसुत्त में नियतिवाद का वर्णन करते हए कहा गया है कि प्राणियों की पवित्रता का कोई कारण नहीं है। वे कारण के बिना ही अपवित्र होते हैं। इसी प्रकार प्रापियों की पवित्रता का भी कोई कारण नहीं है। वे कारण के बिना ही पवित्र होते हैं। अपने सामर्थ्य के बल पर कुछ भी नहीं होता। पुरुष के सामर्थ्य के कारण किसी पदार्य की सत्ता है, ऐसा नहीं है । न बल है, न वीर्य है, न शक्ति है और न पराक्रम ही है। सभी सत्त्व, सभी प्राणी, सभी जीव अवश हैं, दुर्बल हैं, वीर्यविहीन हैं। उनमें नियति, जाति, वैशिष्ट्य एवं स्वभाव के कारण परिवर्तन होता है। वे छः जातियों में से किसी एक जाति में रहकर सब दुःखों का उपभोग करते हैं। चौरासी लाख महाकल्पों के चक्र में भ्रमण करने १. शास्त्रवार्तासमुच्चय, १६६-१७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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