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________________ जैन धर्म-दर्शन सामग्री उपस्थित क्यों न हो। अत: मुद्गपक्ति भी काल के ही कारण है। काल के अभाव में गर्भादि समस्त घटनाएं अस्तव्यस्त हो जाएंगी। अतएव जगत् की सब घटनाओं का कारण काल ही है।' स्वभाववाद-स्वभाववादियों का कथन है कि संसार में जो कुछ होता है, स्वभाव के कारण ही होता है। स्वभाव के अतिरिक्त अन्य कोई भी कारण विश्व-वैचित्र्य के निर्माण में समर्थ नहीं है । बुद्धचरित में स्वभाववाद का स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि कांटों का नुकीलापन, पशु-पक्षियों की विचित्रता आदि स्वभाव के कारण ही हैं । किसी भी प्रवृत्ति में इच्छा अथवा प्रयत्न का कोई स्थान नहीं है। शास्त्रवार्तासमुच्चय में स्वभाववाद का वर्णन करते हुए बताया गया है कि किसी प्राणी का माता के गर्भ में प्रविष्ट होना, बाल्यावस्था प्राप्त करना, शुभाशुभ अनुभवों का भोग करना आदि घटनाएं स्वभाव के बिना घटित नहीं हो सकती। अतः स्वभाव ही संसार की समस्त घटनाओं का कारण है। जगत् की सब वस्तुएं स्वभाव से ही अपने-अपने स्वरूप में विद्यमान रहती हैं तथा अन्त में नष्ट हो जाती हैं। स्वभाव के बिना मूग का पकनो भी संभव नहीं होता, भले ही काल आदि उपस्थित क्यों न हों। यदि किसी स्वभावविशेष वाले कारण के अभाव में भी किसी कार्यविशेष की उत्पत्ति संभव मान ली जाय तो अव्यवस्था उतान्न हो जाएगी। यदि मिट्टी में न घड़ा बनाने का स्वभाव है, न कपड़ा बनाने का तब यह कैसे कहा जा सकता है कि wer १. शास्त्रवार्तासमुच्चय, १६५-१६८. २. बुद्धचरित, ५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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