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कर्मसिद्धान्त
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नियतिवाद, यदृच्छावाद, भूतवाद, पुरुषवाद, देववाद और पुरुषार्थवाद ।
कालवाद - कालवाद के समर्थकों का कथन है कि विश्व की समस्त वस्तुएं तथा प्राणियों के सुख-दुख कालाश्रित हैं । काल ही सब भूनों की सृष्टि करता है तथा उनका संहार करता है । काल ही प्राणियों के समस्त शुभाशुभ परिणामों का जनक है । काल ही प्रजा का संकोच और विस्गर करता है । अथर्ववेद के अनुसार काल ने पृथ्वी को उत्पन्न किया है, काल के आधार पर सूर्य तपता है, काल के ही आधार पर समस्त भन रहते हैं । काल के ही कारण आँखें देखती हैं, काल ही ईश्वर है, काल प्रजापति का भी पिता है, काल सर्वप्रथम देव है. काल से बढ़कर कोई अन्य शक्ति नहीं है।' महाभारत में भी कहा गया है कि कर्म अथवा यज्ञयागादि सुख-दुःख के कारण नहीं हैं। मनुष्य काल द्वारा ही सब कुछ प्राप्त करता है । समस्त कार्यों का काल ही कारण है । शास्त्रवार्तासमुच्चय में कालवाद का स्वरूप इस प्रकार बताया गया है : किसी प्राणी का मातृगर्भ में प्रवेश करना, बाल्यावस्था प्राप्त करना, शुभाशुभ अनुभवों से सम्पर्क होना आदि घटनाएं काल के अभाव में नहीं घट सकतीं । अतः काल हो सब घटनाओं का कारण है । काल भूतों को परिपक्व अवस्था में पहुंचाता है, काल प्रजा का संहार करता है, काल सबके सोने रहने पर भी जागता है, काल की सीमा का उल्लंघन करना किसी के लिए सम्भव नहीं है। मूंग का पकना अनुकूल काल के बिना शक्य नहीं होता, चाहे अन्य
१. अथर्ववेद का कालसूक्त ( १६.५३ - ५४ ).
२. महाभारत का शान्तिपर्व ( अध्याय २५, २८, ३२ आदि ).
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