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________________ २८ जैन धर्म-दर्शन पृथक् कर दिया गया जिससे आचारांग में अब केवल चार चूलाएं ही रह गई हैं । प्रथम श्रुतस्कन्ध में आनेवाले विविध विषयों को एकत्र करके शिष्य हितार्थ चूलाओं में संगृहीत कर स्पष्ट किया गया। इनमें कुछ अनुक्त विषयों का भी समावेश कर दिया गया। इस प्रकार इन चूलाओं के पीछे दो प्रयोजन थे : उक्त विषयों का स्पष्टीकरण तथा अनुक्त विषयों का ग्रहण । प्रथम चूला में सात अध्ययन हैं : १. पिण्डेषणा, २. शय्यैषणा, ३. ईर्ष्या, ४. भाषाजात, ५. वस्त्रं षणा, ६. पात्रैषणा और ७. अवग्रहप्रतिमा । द्वितीय चूला में भी सात अध्ययन है : ९. स्थान, २ निषीधिका, ३. उच्चार- प्रस्रवण, ४. शब्द, ५. रूप, ६. परिक्रिया और ७ अन्योन्यक्रिया । तृतीय चूला भावना अध्ययन के रूप में है। चतुर्थ चूला विमुक्ति-अध्ययनरूप है । प्रथम चूला का प्रथम अध्ययन ग्यारह उद्देशों में विभक्त है। इनमें भिक्षु भिक्षुणी की पिण्डेषणा अर्थात् आहार की गवेषणा के विषय में विधि-निषेधों का निरूपण है । 'शय्यैषणा' नामक द्वितीय अध्ययन में श्रमण श्रमणी के रहने के स्थान अर्थात् वसति की गवेषणा के विषय में प्रकाश डाला गया है । इस अध्ययन में तीन उद्देश हैं । 'ईर्या' नामक तृतीय अध्ययन में साधु-साध्वी की ईर्या अर्थात् गमनागमन रूप क्रिया की शुद्धि - अशुद्धि का विचार किया गया है। इसमें तीन उद्देश हैं । 'भाषाजात' नामक चतुर्थ अध्ययन के दो उद्देश हैं जिनमें भिक्षभिक्षुणी की वाणी का विचार किया गया है। प्रथम उद्देश में सोलह प्रकार की वचन-विभक्ति तथा द्वितीय में कषायजनक वचन - प्रयोग की व्याख्या है। पंचम अध्ययन 'वस्त्रषणा' के भी दो उद्देश हैं। इनमें से प्रथम में वस्त्रग्रहण सम्बन्धी तथा द्वितीय में वस्त्रधारण सम्बन्धी चर्चा है । षष्ठ अध्ययन 'पात्रषणा' के भी दो उद्देश हैं जिनमें अलाबु, काष्ठ एवं मिट्टी के पात्र के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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