SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ जैन धर्म-दर्शन यन थे किन्तु महापरिज्ञा नामक एक अध्ययन का लोप हो जाने के कारण अब इसमें आठ अध्ययन ही रह गये हैं । इन अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं : १. शस्त्रपरिज्ञा, २. लोकविजय, ३. शीतोष्णीय, ४. सम्यक्त्व, ५. लोकसार अथवा आवंति, ६. धूत, ७. विमोक्ष और ८. उपधानश्रुत । ये अध्ययन विभिन्न उद्देशों में विभक्त हैं। प्रथम अध्ययन के सात उद्देश हैं। द्वितीय आदि अध्ययनों के क्रमश: छः, चार, चार, छः, पाँच, आठ और चार उद्देश हैं। इस प्रकार प्रथम श्रुतस्कन्ध में सब मिलाकर ४४ उद्देश हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों का संयुक्त नाम 'ब्रह्मचर्य' है। इसीलिए आचार्य शीलांक ने अपनी टीका में इस श्रुतस्कन्ध को 'ब्रह्मचर्य-श्रुतस्कन्ध' कहा है । यहाँ ब्रह्मचर्य का अर्थ संयम है जो अहिंसा एवं समभाव की साधना का नामान्तर है । द्वितीय श्रुतस्कन्ध को नियुक्तिकार ने 'आचाराग्र' नाम दिया है। यह वस्तुतः प्रथम श्रुतस्कन्ध का. परिशिष्ट है । इसीलिए इसे आचारचूला अथवा आचारचूलिका भी कहा जाता है। विषय के विशेष स्पष्टीकरण की दृष्टि से इस प्रकार की चूलिकाएं ग्रन्थों में जोड़ी जाती हैं । आचाराग्र अथवा आचारचूलिका-रूप द्वितीय श्रुतस्कन्ध पाँच चूलाओं में विभक्त है । प्रथम चूला में पिण्डैषणादि सात तथा द्वितीय चूला में स्थान आदि सात अध्ययन हैं। तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम चूलाएं एक-एक अध्ययन के रूप में ही हैं। प्रथम चूला के प्रथम अध्ययन के ग्यारह, द्वितीय तथा तृतीय अध्ययनों के तीन-तीन और अन्तिम चार अध्ययनों के दो-दो उद्देश हैं। द्वितीयादि चूलाओं के अध्ययन एक-एक उद्देश के रूप में ही हैं । उपलब्ध समग्र जैन साहित्य में आचारांग का प्रथम श्रुतस्कन्ध प्राचीनतम है, यह इसकी भाषा, शैली एवं भावों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy